Sunday, September 30, 2007
लागा चुनरी में दाग - फिल्म समिक्षा
निर्माता : आदित्य चोपड़ा
निर्देशक : प्रदीप सरकार
संगीत : शांतनु मोइत्रा
कलाकार : रानी मुखर्जी, कोंकणा सेन शर्मा, अभिषेक बच्चन, कुणाल कपूर, जया बच्चन, अनुपम खेर
इन दिनों भावना प्रधान फिल्में बनना लगभग बंद हो गई हैं। निर्माता-निर्देशकों ने यह मान लिया कि अब इस तरह की फिल्में देखना दर्शकों को पसंद नहीं है। ऐसे समय निर्देशक प्रदीप सरकार भावना और नारीप्रधान फिल्म ‘लागा चुनरी में दाग’ लेकर आ रहे हैं। सरकार की पिछली फिल्म ‘परिणीता’ को सराहना और बॉक्स ऑफिस पर सफलता दोनों साथ मिली थी।
बनारस में रहने वाले शिवशंकर सहाय (अनुपम खेर) कॉलेज में प्रोफेसर थे और अब सेवानिवृत्त हो गए हैं। उनके परिवार में पत्नी सावित्री (जया बच्चन) के अलावा दो लड़कियाँ बड़की (रानी मुखर्जी) और छुटकी (कोंकणा सेन शर्मा) हैं। प्रोफेसर साहब तब आर्थिक संकटों में घिर जाते हैं जब उनकी पेंशन कुछ कारणों से बंद हो जाती है।
इसका सीधा असर उनके परिवार पर होता है। शिवशंकर को लगता है कि अगर उनकी लड़की की जगह लड़का होता तो उन्हें इस तरह के आर्थिक संकट से नहीं गुजरना पड़ता। इस संकट से सावित्री और बड़की अच्छी तरह परिचित हैं। वे इसकी आँच छुटकी पर नहीं आने देती हैं।
इस मुसीबत से निपटने के लिए बड़की मुंबई जाने का फैसला करती है, ताकि छुटकी पढ़ाई जारी रख सके। शिवशंकर इस फैसले के खिलाफ हैं। उनका मानना है कि बड़की वहाँ जाकर भी कुछ नहीं कर पाएगी।
पिता के विरोध के बावजूद बड़की मुंबई कुछ सपने लेकर जाती है। मुंबई जाकर उसे कड़वी हकीकतों का सामना करना पड़ता है। वह एक रहस्यपूर्ण जिंदगी जीने लगती है। उसे कई त्याग करना पड़ते हैं। अपने परिवार की हर जरूरत को वह पूरा करती है।
छुटकी पढ़ाई पूरी करने के बाद मुंबई आ जाती है। उसे एक विज्ञापन एजेंसी में काम मिल जाता है और वह विवान (कुणाल कपूर) से प्यार करने लगती है। छुटकी के आने के बाद बड़की की मुसीबत और बढ़ जाती है। उसे अपना वह पक्ष छिपाने में परेशानी होती हैं जो वह छुटकी को नहीं बताना चाहती है।
बड़की को रोहन (अभिषेक बच्चन) से प्यार हो जाता है। यह प्यार ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रहता, क्योंकि रोहन बड़की की हकीकत से वाकिफ हो जाता है। फिल्म में दिलचस्प मोड़ तब आता है जब छुटकी को बड़की का राज पता चलता है।
क्या है बड़की का राज?
क्या रोहन बड़की को अपनाएगा?
क्या छुटकी अपने माता-पिता को सब बता देगी?
इसके जवाब मिलेंगे ‘लागा चुनरी में दाग’ देखने के बाद।
(स्रोत-वेबदुनिया)
रोमांसिंग विद देव आनन्द - ६
गाता रहे मेरा दिल
आजादी के बाद फिल्मों में टीम वर्क का सिलसिला राजकपूर ने शुरू किया। उन्होंने लता-मुकेश/शैलेन्द्र-हसरत/शंकर-जयकिशन/ की जोड़ी को अपनी टीम में शामिल किया। दूसरी ओर नौशाद-शकील साथ रहे। साहिर-एसडी बर्मन की जुगलबंदी लंबी चली। देव आनन्द ने गुरुदत्त/गीता बाली/किशोर कुमार/एसडी बर्मन/ साहिर को अपनी टीम का हमसफर बनाया। नौशाद तथा शंकर जयकिशन के सामने यदि किसी संगीतकार को सफलता और लोकप्रियता मिली तो वे थे दादा बर्मन। ये तमाम साथी कलाकार मिलकर देवआनन्द को लार्जर देन लाइफ बनाते हैं।
चलते चलो, चलते चलो
ये देव आनंद के जीवन का फलसफा है। उनके करियर के कुछ खट्टे-मीठे-चरपरे संस्मरण :
* राजकपूर जैसे दोस्त के साथ देव साब ने एक भी फिल्म में काम नहीं किया।
* दिलीपकुमार के साथ वे सिर्फ इंसानियत फिल्म में आए थे।
* किशोर कुमार की आवाज उधार लेकर देव ने अपनी शिखर यात्रा तय की।
* फिल्म आनन्द और आनन्द में देव ने अपने बेटे सुनील को लाँच किया, मगर वे सफल नहीं हुए।
* देव आनन्द कभी पार्टी नहीं देते और दूसरों की पार्टी में भी कभी कभार ही जाते हैं।
* देव आनंद ने कई लड़कियों को बतौर हीरोइन अपनी फिल्मों में मौका दिया है।
(स्रोत-वेबदुनिया)
रोमांसिंग विद देव आनन्द - ५
धोबी की दिलचस्प भूल!
प्रभात फिल्म कंपनी (पुणे) में काम करते समय अपने धोबी की गलती से देव आनन्द की मुलाकात ऐसे व्यक्ति से हुई, जो आगे चलकर उनका हमदम दोस्त बना। वह व्यक्ति थे गुरुदत्त, जिन्होंने प्यासा/कागज के फूल और साहब, बीबी और गुलाब जैसी क्लासिक फिल्में बनाकर दुनिया में नाम कमाया। गुरुदत्त कर्नाटक से शांति निकेतन वाया उदयशंकर के अल्मोड़ा स्थित बैले ग्रुप से कोरियोग्राफी सीखकर प्रभात में आए थे। एक बार धोबी ने दोनों के शर्ट की रांग डिलेवरी दे दी। अपने-अपने शर्ट लेकर धोबी की दुकान पर संयोग से एक साथ पहुँचे। धोबी की गलती ने उन्हें जिंदगीभर का दोस्त बना दिया। दोनों ने एक-दूसरे से वादा किया कि जो कोई पहले निर्माता-निर्देशक बनेगा, वह दूसरे को फिल्म में ब्रेक देगा। 1951-52 में देव ने अपने बैनर नवकेतन के जरिए ‘बाजी’ और ‘जाल’ फिल्म का निर्देशन गुरुदत्त से कराया। इसी प्रकार गुरुदत्त ने फिल्म ‘सीआईडी’ में देव को शकीला के साथ पेश किया।
चुप-चुप खड़े हो जरूर कोई बात है
हर हीरो का किसी न किसी हीरोइन से रोमांस का चक्कर चलना फिल्मी दुनिया की आम बात है। 1948 में बनी ‘विद्या’ फिल्म की नायिका सुरैया थी। इसके सेट पर ही दोनों में प्यार हो गया। 1951 तक दोनों ने सात फिल्मों में साथ काम किया। दोनों के प्यार के चर्चे नरगिस-राजकपूर या दिलीपकुमार-मधुबाला के चर्चों की तरह हर किसी की जुबान पर थे। सुरैया की नानी कट्टर मुस्लिम थी। 1947 के भारत विभाजन से हिन्दू-मुसलमान के बीच दरारें बढ़ गई थीं। यदि सुरैया की शादी देव से हुई होती तो दंगे तक भड़कने का अंदेशा था। इसलिए सुरैया ताउम्र कुँवारी रही और उन्होंने देव के अलावा और किसी के सपने नहीं देखे, जबकि पाकिस्तान से एक दूल्हा बैंडबाजे के साथ बारात लेकर उनके दरवाजे तक आ गया था। देव ने अपने टूटे प्यार का इजहार कई बार किया है। बाद में ‘टैक्सी ड्राइवर’ की हीरोइन मोना याने कल्पना कार्तिक से फिल्म के सेट पर सिर्फ दस मिनट में शादी हो गई। सेट पर उपस्थित उनके भाई चेतन आनन्द तक को इस शादी की भनक तक नहीं थी।
(स्रोत-वेबदुनिया)
Friday, September 28, 2007
रोमांसिंग विद देव आनन्द - ४
जाएँ तो जाएँ कहाँ!
26 सितम्बर 1923 को पंजाब के गुरदासपुर कस्बे में जन्मे देव आनन्द के पिता पिशोरीमल नामी वकील थे। वे कांग्रेस के कार्यकर्ता थे और आजादी की लड़ाई में कई बार जेल भी गए थे। देव साहब अपने माता-पिता की पाँचवीं संतान थे। 1940 में माता के निधन के बाद नौ भाई-बहनों को अपनी देखभाल खुद करनी पड़ी। बचपन कठिनाइयों में गुजरा। रद्दी की दुकान से बाबूराव पटेल द्वारा सम्पादित फिल्म इंडिया के पुराने अंक पढ़कर देव साहब ने फिल्मों में दिलचस्पी लेना शुरू किया। कई बार दोस्तों की जुगाड़ से फिल्म भी देख लिया करते थे। फिल्म ‘बंधन’ के सिलसिले में अशोक कुमार गुरदासपुर आए, तो भीड़ में घिरे दादा मुनि को एकटक निहारते रहे। अशोककुमार के प्रति लोगों का भक्तिभाव देखकर देव आनंद ने मन में सोचा कि बी.ए. करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए विदेश नहीं जा सका तो वे अभिनेता बनना पसंद करेंगे। पिता के मुंबई जाकर काम न करने की सलाह के विपरीत देव अपने भाई चेतन के साथ फ्रंटियर मेल से 1943 में बंबई पहुँचे। उस समय उनकी जेब में तीस रुपए थे। ये तीस रुपए रंग लाए और जाएँ तो जाएँ कहाँ वाले देव आनन्द को फिल्मी दुनिया में आशियाना मिल गया।
(स्रोत्-वेबदुनिया)
Thursday, September 27, 2007
रोमांसिंग विद देव आनन्द -३
हर फिक्र को धुएँ में उड़ाते चले गए
देव आनन्द के सदाबहार रहने और आज तक सक्रिय रहने के अनेक राज हैं। मसलन उन्होंने सिगरेट उतनी ही पी, जितनी अभिनय के लिए जरूरी थी। शराब को दवा की तरह पिया। सिर्फ एक जाम और वह भी पार्टियों में मेहमानों की शान रखने के लिए। देव साहब दादा मुनि यानी अशोक कुमार के शिष्य रहे हैं, इसलिए स्वास्थ्य के प्रति सदैव सजग रहे। उन्होंने फिल्मों से जो पैसा कमाया, उसे फिल्मों में ही लगाया। अपने बैनर नवकेतन के तले अपने बड़े भाई चेतन आनन्द के निर्देशन में उन्होंने यादगार फिल्मों का निर्माण किया। जब चेतन ने अपना प्रोडक्शन हाउस अलग कायम किया तो छोटे भाई विजय आनन्द को साथ लेकर ‘तेरे घर के सामने’ तथा ‘गाइड’ जैसी कालजयी फिल्में दर्शकों को उपहार में दी। आर.के. नारायण के उपन्यास पर बनी ‘गाइड’ ने अपने समय में देश में एक नई बहस को जन्म दिया था। आज फिर जीने की तमन्ना है, आज फिर मरने का इरादा है।
एंटी हीरो की लोकप्रिय इमेज
हिन्दी सिनेमा में पहली बार एंटी हीरो के रूप में आए अशोक कुमार, बॉम्बे टॉकीज की फिल्म ‘किस्मत’ (1943) में। यह फिल्म कलकत्ता के रॉक्सी सिनेमा में 3 साल 11 महीने और 24 दिन हाउसफुल में चली थी। इसमें कवि प्रदीप का गाना उन दिनों आजादी का तराना बन गया था- दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिन्दुस्तान हमारा है। देव आनन्द ने अपने अँगरेजियत भरे तौर-तरीकों से दर्शकों को लुभाया। उनकी अधिकांश फिल्मों की थीम अपराध आधारित होती थीं। 1958 में बनी ‘कालापानी’ में अभिनय का सर्वोत्तम फिल्म फेयर अवार्ड मिला। 1966 में ‘गाइड’ ने दूसरी बार यह इनाम उन्हें दिलाया। ज्वेलथीफ/ जानी मेरा नाम/ हरे रामा हरे कृष्णा फिल्मों का दौर देव साहब के जीवन का स्वर्णिम काल माना जाता है। विविध भारती के एक इंटरव्यू में देव आनन्द ने कहा था- कामयाबियों का जश्न और नाकामयाबी का मातम मनाए बिना मैं अपना काम लगातार किए जा रहा हूँ। इसके पीछे उनकी सक्रियता और आत्मविश्वास है।
(स्रोत्-वेबदुनिया)
रोमांसिंग विद देव आनन्द - २
जो भी प्यार से मिला
देव आनन्द ने फैशन के अनेक नए प्रतिमान कायम किए। वैसे वे धोती-कुरता पहनकर प्रभात फिल्म कंपनी की फिल्म ‘हम एक हैं’ से परदे पर प्रकट हुए थे, लेकिन जल्दी ही उन्होंने विलायती तानाबाना धारण कर लिया। सिर पर कई आकार-प्रकार के हेट। गले में स्कार्फ। बालों में गुब्बारे। शर्ट की सबसे ऊपरी बटन हमेशा बंद। हाथ में हंटर/कंधे झुकाकर और लंबे हाथों द्वारा खुले आसमान के नीचे हरी-भरी घाटियों तथा सड़कों पर अपनी मचलती नायिका के पीछे-पीछे गीत गाते देव आनन्द युवा वर्ग को लुभाते रहे हैं। हम हैं राही प्यार के, हम से कुछ न बोलिए। जो भी प्यार से मिला हम उसी के हो लिए। या फिर आँचल में क्या जी, रुपहला बादल। बादल में क्या जी, अजब-सी हलचल। जैसे मदमस्त करने वाले गीतों के बीच देव साहब की चुहलबाजी दर्शकों के आकर्षण का केंद्र रही है।
(स्रोत : वेबदुनिया)
Wednesday, September 26, 2007
जॉनी गद्दार - फिल्म समिक्षा
निर्देशक : श्रीराम राघवन
संगीत : विशाल-शेखर
कलाकार : नील मुकेश, धर्मेन्द्र, रिमी सेन, ज़ाकिर हुसैन, विनय पाठक
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पाँच सदस्यों की एक गैंग है, जो गैर-कानूनी गतिविधियों में लिप्त है। शेषाद्रि (धर्मेन्द्र), विक्रम (नील मुकेश), शारदुल (जाकिर हुसैन), प्रकाश (विनय पाठक) और दया (शिवा) इसके सदस्य हैं। साठ वर्ष से अधिक उम्र का शेषाद्रि सबसे बड़ा और बीस वर्ष की उम्र के आसपास का विक्रम इस ग्रुप का सबसे छोटा सदस्य है।
सत्तर के दशक में शेषाद्रि स्मगलिंग करता था। पकड़े जाने पर वह जेल भी गया था। शेषाद्रि अपनी पत्नी को बेहद चाहता था, जिसकी कैंसर की वजह से मृत्यु हो गई थी। तब से शेषाद्रि का विश्वास भगवान पर से उठ गया था। शेषाद्रि ने अपने पुराने संबंधों के आधार पर इस ग्रुप को बनाया।
शारदुल डांस बार चलाता था, लेकिन सरकार ने बैन लगाया और वह मुसीबत में फँस गया। वह बहुत महत्वाकांक्षी है और अंडरवर्ल्ड के साथ-साथ पुलिस वालों से भी उसकी अच्छी दोस्ती है। विक्रम को सिर्फ पैसा कमाने से मतलब है। अच्छे या बुरे से उसे कोई मतलब नहीं है। तेज गति से जीने वाला विक्रम बेहद बुद्धिमान है।
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प्रकाश एक जुआघर चलाता है, जिसमें शेषाद्रि और शारदुल उसके पार्टनर हैं। उसकी वर्षा नामक एक सुंदर पत्नी है, जो उसकी खतरनाक लोगों से दोस्ती को देख डरती रहती है। दया तब तक अच्छा है, जब तक कोई उसका बुरा नहीं करे। उसकी माँ बीमार है, जिसकी उसे हमेशा चिंता लगी रहती है।
विक्रम को मिनी (रिमी सेन) से प्यार है। मिनी हमेशा विक्रम को गैंग छोड़ने के लिए कहती रहती है। उसे लगता है कि इस गैंग से जुड़े रहने की वजह से विक्रम को अंत में नुकसान ही होगा।
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शेषाद्रि के पास एक ऐसा ऑफर आता है, जिससे सभी की किस्मत बदल सकती है। काम सिर्फ चार दिनों का है और बदले में ढेर सारा पैसा। सभी इस ऑफर को स्वीकार कर लेते हैं।
अचानक विक्रम गायब हो जाता है। वह मिनी के साथ नई जिंदगी शुरू करना चाहता है, लेकिन उसके दिमाग में एक और आइडिया है। वह अकेले ही इस काम को कर सारा पैसा पाना चाहता है, लेकिन यह सब इतना आसान नहीं है। उसे पता है कि इस गद्दारी के बदले में उसकी जान भी जा सकती है। 'जॉनी गद्दार' कहानी है प्यार, अपराध, बदला और हत्या की।
रोमांसिंग विद देव आनन्द - १
भारतीय सिनेमा में तीन अभिनेता अपने आप में एक्टिंग के स्कूल हो गए हैं। दिलीपकुमार/राजकपूर और देव आनन्द। इनमें से देव आनन्द तथा दिलीपकुमार हमारे बीच मौजूद हैं। राज साहब को बिदा हुए भले ही दो दशक हो गए हों, उनकी परछाइयाँ हमारे इर्द-गिर्द मौजूद हैं। इन तीनों अभिनेताओं ने अपनी प्रतिभा तथा लगन के आधार पर अभिनय के नए कीर्तिमान रचे और आने वाली पीढ़ियों को अभिनय का ककहरा सिखाया। उसे हम शाहरुख खान/अमिताभ बच्चन जैसे कलाकारों में महसूस कर सकते हैं।
देव साहब का फिल्म करियर छह दशक से अधिक लंबा है। इतना कालखंड एक इतिहास बनाने के लिए काफी है। आज वे जीवित किवदंती बने हुए हैं। इस जन्मदिवस (26 सितंबर) के अवसर पर उनकी आत्मकथा ‘रोमांसिंग विद लाइफ’ प्रकाशित हो रही है। उसके जरिए हिन्दी सिनेमा के इतिहास का एक शिलालेख हमारे सामने आएगा।
आइए इस प्रसंग पर हम देव साहब के जीवन के कुछ अनछुए दिलचस्प पहलुओं को जानें-
आशावादी सिनेमा
देव आनन्द के सिनेमा का सबसे सुखद पहलू यह है कि उनकी फिल्में मनोरंजन और सिर्फ मनोरंजन करती हैं। उनमें गीत हैं, संगीत है, जीवन का उल्लास है और एक आशावादी दृष्टिकोण। उन्होंने अपनी बॉडी लैंग्वेज/रहन-सहन/चाल-ढाल/पोशाख और हावभाव के जरिए आजाद भारत के नौजवानों को स्मार्ट रहना सिखाया है। वे हमेशा युवा वर्ग खासकर युवतियों से सदैव घिरे रहे, इसलिए चौरासी साल की इस उम्र में भी सदाबहार बने हुए हैं। उन्होंने अपनी फिल्मों में सदैव नई नवेली नायिकाओं को मौका दिया और बॉलीवुड में स्थापित किया। ..........
(स्रोत : वेबदुनिया)
‘तूनपुर का सुपर हीरो’ - एक और थ्री-डी एनिमेशन फिल्म
‘यू, मी और हम’ में साथ काम कर रहे अजय देवगन और काजोल अब एक थ्री-डी एनिमेशन फिल्म ‘तूनपुर का सुपर हीरो’ में भी साथ नजर आएँगे। इस फिल्म का निर्देशन किरीट खुराना करने वाले हैं। इसमें दिखाया गया है कि एक फिल्मी हीरो अचानक कार्टूनों की दुनिया में पहुँच जाता है और फिर उसके साथ दिलचस्प घटनाक्रम घटित होते हैं। अजय देवगन इसमें अजय देवगन की ही भूमिका निभा रहे हैं।
(स्रोत - वेबदुनिया)
(स्रोत : वेबदुनिया)
Monday, September 24, 2007
प्रशांत बने इंडियन आईडल
दार्जीलिंग के प्रशांत तमांग नए इंडियन आइडल बन गए हैं। उन्हें रविवार को यहाँ आयोजित भव्य समारोह में यह खिताब प्रदान किया गया।कोलकाता पुलिस में कार्यरत प्रशांत ने तीसरा इंडियन आइडल बनने की होड़ में मेघालय के अमित पॉल को पीछे छोड़ दिया। उन्हें सितारों से जगमगाते भव्य समारोह में अभिनेता जॉन अब्राहम ने इंडियन आइडल घोषित किया। समारोह में पार्श्व गायक सुखविंदरसिंह, मिकासिंह, पूर्व इंडियन आइडल अभिजीत सावंत और संदीप आचार्य तथा इंडियन आइडल के शीर्ष 13 प्रतियोगियों ने कार्यक्रम प्रस्तुत किए। इस जीत ने भारत के पूर्वो्तर राज्य के करोड़ों लोगों को इस बात का भी सुखद अहसास कराया है कि पूरा देश उनके साथ है और वे भी इस देश का एक अहम हिस्सा है। यह निश्चित ही विचारणीय बात है कि देश के टीवी चैनलों और खबरिया चनलों न कभी पूर्वोत्तर राज्यों को वह सम्मान और दगह नहीं दी जिसके वो हकदार थे। देश के खबरिया टीवी चैनलों और टीवी के धारावाहिकों को देखकर कभी ऐसा नहीं लगा कि पूर्वोत्तर राज्य का कोई प्रतिनिधित्व इसमें है। ज़ी टीवी के कार्यक्रम सा रे गा मा पा चैलेंज 2006 में असम के दोबोजीत ने शानदार जीत दर्ज कराकर पूर्वोत्तर राज्यों के युवाओं को संगीत के माध्यम से देश की मुख्य धारा में लाने की जो शुरुआत हुई थी प्रशांत ने उसी सिलसिले को आगे बढ़ाया है।
- (स्रोत - हिन्दी मिडिया)


Sunday, September 23, 2007
नन्हे जैसलमेर (हिन्दी सिनेमा)- डाउनलोड
नन्हें जैसलमेर
कहानी : फिल्म की कहानी जैसलमेर में रहने वाले एक नन्हें बच्चे नन्हें (दिवज यादव) की है जो अभिनेता बॉबी देओल का दीवाना है। वह अनपढ होकर भी चार भाशाएं बोलता है और अपने पिता के घर छोडकर चले जाने के बाद अकेला परिवार की जिम्मेदारी भी उठा रहा है । लेकिन एक दिन बॉबी के सपने देखते देखते जब सचमुच बॉबी उसके सामने आ खडे होते हैं तो न केवल उसकी दुनिया बदल जाती है बल्कि उसके सपनों को भी नया आसमान मिल जाता है पर इस आसमान की हकीकत से जब वह नीचे उतरता है तो भौंचका रह जाता है और यहीं से शुरू होती है नन्हें के सपनों का बडा आसमान देने की वास्तविक शुरूआत जिसमे उसकी माँ (प्रतीक्षा लोंकर) उम्रदराज अनपढों को पढा रही शिक्षिका (बीना काक) और निश्चित रूप से अपनी असली भूमिका रहे बॉबी देओल उसका आधार बनते हैं। पूरी फिल्म एक बच्चे के सपनों के मनोविज्ञान और उसके गुंजल को सुलझाकर उसे एक नया विस्तार देने की कहानी है ।
डाउनलोड करने के लिए यह लिन्क प्रयोग किजिए ।


अगर (हिन्दी सिनेमा) - २००७- डाउनलोड
निर्माता : नरेन्द्र बजाज-श्याम बजाज
निर्देशक : अनंत महादेवन
संगीत : मिथुन
कलाकार : तुषार कपूर, उदिता गोस्वामी, श्रेयस तलपदे, सोफी
अगर (हिन्दी सिनेमा) - २००७- डाउनलोड
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Friday, September 21, 2007
12 वर्ष के बच्चे बने जॉन - Spices of Glamour World
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स्मोकिंग के खिलाफ निर्देशक अनुराग कश्यप ‘नो स्मोकिंग’ बना रहे हैं। इसमें जॉन अब्राहम और रणवीर शौरी प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। फिल्म की कहानी में एक दृश्य ऐसा भी है, जिसमें उनकी उम्र 12 वर्ष के आसपास है और वे सिगरेट पी रहे हैं।
खबर है कि अनुराग ने बजाय बारह वर्ष के कलाकारों को लेने के जॉन और रणवीर पर ही यह सीन फिल्माने का निश्चय किया। जॉन और रणवीर को तो विश्वास ही नहीं हुआ कि अनुराग उनको बारह वर्ष का बनाने जा रहे हैं। अनुराग ने दोनों को बनियान और हाफ पैंट पहनाया और यह शॉट लिया। जॉन और रणवीर 12 वर्ष के बच्चे के रूप में कैसे लगेंगे, इसके लिए फिल्म देखना पड़ेगी।
डार्लिङ - २००७ (Hindi Film) - डाउनलोड
निर्माता : रामगोपाल वर्मा, भूषण कुमार
निर्देशक : रामगोपाल वर्मा
संगीत : हिमेश रेशमिया
कलाकार : फरदीन खान, ईशा देओल, ईशा कोप्पिकर
Tuesday, September 18, 2007
स्टार उत्सव पर काव्यांजली
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धारावाहिक ‘काव्यांजली’ का प्रसारण अब स्टार उत्सव पर 17 सितंबर को रात 9 बजे से होने जा रहा है। यह एक प्रेम कहानी है। इसमें अमृता सिंह ने भी मुख्य भूमिका निभाई है। इस धारावाहिक को बॉलीवुड की रोमांटिक फिल्मों की तरह बनाया गया है।
कहानी है काव्य की, जो स्वर्गवासी हो चुके मयंक नन्दा और उनकी पत्नी नित्या नन्दा (अमृता सिंह) का बेटा है। काव्य दस वर्ष बाद अमरीका से लौटता है और जिस दिन वह शिमला पहुँचता है, रात के अंधेरे में एक अजनबी रास्ते में उसकी मदद करता है।
उसके चेहरे को देखते ही वह पहली नजर में ही उसे दिल दे बैठता है। बातों-बातों में वे एक दूसरे से इजहार भी कर देते हैं। अचानक एक दिन उसकी आँखों के सामने वह लड़की दुर्घटना में मर जाती है। सदमे और अविश्वास की अवस्था में वह अब भी उस चेहरे की तलाश कर रहा है। इस तरह से इस प्रेम कहानी की शुरूआत होती है।
काव्य की भूमिका निभाई हैं रक्षत साहनी ने। अंजली की भूमिका नताशा/अनिता हंसानंदानी ने अभिनीत की है। अमृता सिंह के अलावा अचला सचदेव, विद्या सिन्हा, निर्मल पांडे और सुष्मिता मुखर्जी भी इस धारावाहिक में हैं।
बिपाशा भी चली हॉलीवुड
लगता है कि आने वाले दिनों में हॉलीवुड की फिल्मों में भारतीय सितारे ही दिखाई देंगे। अधिकांश कलाकार इन दिनों हॉलीवुड को महत्व दे रहे हैं। भारतीय अभिनेत्रियों ने हॉलीवुड में अपने-अपने मैनेजर नियुक्त कर दिए हैं, जो उनके लिए फिल्म ढूँढने का काम कर रहे हैं।
दुनिया के सात आश्चर्य घोषित करने के लिए बिपाशा बसु कुछ महीनों पूर्व लिस्बन गई थी। बिपाशा ने वहाँ उपस्थित लोगों का ध्यान आकर्षित किया था। हॉलीवुड की फिल्मों में काम करने की चाह बिपाशा को भी है। बिपाशा ने भी अपना एक इंटरनेशनल मैनेजर नियुक्त किया है।
खबर है कि उस मैनेजर के जरिये बिपाशा को दो फिल्में मिली हैं और एक फिल्म के लिए बात चली रही है। बिपाशा ने इस मामले में चुप्पी साध रखी है क्योंकि अभी अनुबंध नहीं हुआ है। बिपाशा को हॉलीवुड में भारत की सोफिया लॉरेन कहकर प्रचारित किया जा रहा है।
(स्रोत - वेबदुनिया)
बॉबी बनेंगे बिहारी
- समय ताम्रकर
बॉबी देओल की भले ही फिल्में नहीं चल रही हो, लेकिन वे डिमांड में लगातार बने हुए हैं। इन दिनों वे उत्साह से भरे हुए हैं। उन्हें पहली बार ऐसी फिल्म मिली है जो यथार्थ के करीब है। फिल्म का नाम है ‘सहर’ और इसके निर्देशक है कबीर कौशिक। इसमें बॉबी के साथ अरशद वारसी भी हैं।
अभी तक बॉबी लार्जर देन लाइफ या मसाला फिल्मों के नायक की भूमिका निभाते आए हैं। ‘सहर’ में वे एक बिहारी बने हैं जो अपने जीवन-यापन के लिए मुंबई आता है। अब हँसिए मत कि बॉबी बिहारी के रूप में कैसे लगेंगे?
(स्रोत - वेबदुनिया)
Friday, September 14, 2007
धमाल - २००७ (हिन्दी सिनेमा) -डाउनलोड
धमाल - २००७ (हिन्दी सिनेमा)
निर्माता : अशोक ठाकरिया-इंद्रकुमार
निर्देशक : इंद्रकुमार
संगीतकार : अदनान सामी
कलाकार : संजय दत्त, अरशद वारसी, रितेश देशमुख, आशीष चौधरी, जावेद जाफरी
डाउनलोड लिन्क यहाँ पर है ।
Part 1 डाउनलोड
Part 2 डाउनलोड
Part 3 डाउनलोड
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Part 5 डाउनलोड
Wednesday, September 12, 2007
बिपाशा पर आधारित मोबाइल गेम :)
बिपाशा बसु इतनी लोकप्रिय हो गई हैं कि उन पर आधारित मोबाइल गेम शीघ्र ही लांच होने जा रहा है। इस गेम का नाम होगा ‘बिपाशा बसु जेट स्की चैम्प’ और जल्द ही यह सभी नेटवर्क पर उपलब्ध होगा।
इस गेम के अलावा दो अन्य गेम्स पर भी काम चल रहा है। एक बाउलिंग पर आधारित है, जबकि दूसरे में बिपाशा अत्याधुनिक तकनीक से लैस राजकुमारी बनेंगी जो दुश्मनों से लड़ाई करेंगी। बिपाशा इससे बेहद खुश हैं। वे कहती हैं कि इन खेलों के माध्यम से मेरे प्रशंसकों को मेरा नया रूप देखने को मिलेगा।
बात खेल की निकली है तो बता दें कि बिपाशा की फुटबॉल पर आधारित फिल्म ‘गोल’ जल्दी ही प्रदर्शित होने वाली है। इस फिल्म का केन्द्रीय बिंदु फुटबॉल है। बिपाशा इसमें पाकिस्तानी लड़की बनी हैं।
‘इश्क है तुमसे’ के बाद यह दूसरा मौका है जब बिपाशा मुस्लिम लड़की का किरदार निभा रही हैं। इस फिल्म में बिपाशा के साथ उनके खासमखास जॉन अब्राहम हैं। बिपाशा के मुताबिक इस फिल्म में जॉन और वह बिलकुल ही अलग अंदाज में नजर आएँगे।
Monday, September 10, 2007
बाल गणेश : 3-डी एनिमेशन फिल्म
फिल्मों और टीवी की दुनिया में स्पेशल इफेक्ट के लिए पंकज शर्मा एक जाना-पहचाना नाम है। पंकज ने बतौर सह-निर्माता और निर्देशक हाल ही में 3-डी एनिमेशन फिल्म ‘बाल गणेश’ पूरी की है। इस फिल्म को गणेश चतुर्थी पर प्रदर्शित किए जाने की योजना थी, लेकिन कुछ कारणों से अब इसे अक्टूबर में प्रदर्शित किया जाएगा।
पंकज का कहना है ‘’यह फिल्म मेरे 18 महीनों के कठोर परिश्रम का फल है। थ्री-डी इफेक्ट को बेहतर बनाने के लिए पोषाख और विग का उपयोग किया गया है। हम चाहते तो सस्ते टू-डी स्केचों का उपयोग कर सकते थे, लेकिन इससे हॉलीवुड में बनने वाली एनिमेशन फिल्मों का मुकाबला नहीं किया जा सकता था। फिल्म में खूब एक्शन है और सात गाने भी हैं। यह फिल्म बच्चे और वयस्क दोनों को ध्यान में रखकर बनाई गई है।
(स्रोत - वेबदुनिया)
कैसे कहें - हिन्दी सिनेमा (२००७) - डाउनलोड
निर्देशक : मोहित हुसैन
संगीत : प्रीतम
कलाकार : राजवीर, नेहा जुल्का, अदिति गोवित्रिकर, मेघना मलिक
‘कैसे कहें’ कहानी है आदित्य (राजवीर) की, जो एक बैंक में काम करता है। आदित्य एक महत्वाकांक्षी युवक है और बेहतर भविष्य के लिए वह कठोर परिश्रम करता है।
राधिका (नेहा जुल्का) एक टीवी पत्रकार है। राधिका को अपने सपने पूरे करने हैं। वह भी दिन-रात अपने काम में जुटी रहती है। स्टिंग ऑपरेशन के दौरान राधिका की मुलाकात आदित्य से होती है।
धीरे-धीरे उनका परिचय बढ़ता है और वे एक-दूसरे को चाहने लगते हैं। उनमें प्यार जरूर है, लेकिन उनके लिए प्यार से कई ज्यादा महत्वपूर्ण करियर हैं।
दोनों अपने काम में इतने व्यस्त रहते हैं कि प्यार के लिए उनके पास समय ही नहीं रहता। महत्वाकांक्षाएँ उन पर हावी हो जाती हैं। फिर लड़ाई शुरू होती है करियर बनाम प्यार की। निर्देशक मोहित हुसैन ने नए कलाकारों को लेकर यह फिल्म बनाई है। उन्होंने आज के कामकाजी युवा जोड़ों की समस्या को अपनी कहानी का आधार बनाया है।
- समय ताम्रकर
कैसे कहें - हिन्दी सिनेमा (२००७) - डाउनलोड करने के लिए यह लिन्क उपयोग किजिए ।
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Sunday, September 9, 2007
ईण्डियन आइडोल ३ - सेप्टेम्बर ७, गला राउन्ड - डाउनलोड
ईण्डियन आइडोल ३ - सेप्टेम्बर ७, गला राउन्ड - डाउनलोड
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Saturday, September 8, 2007
दिमाग मत लगाओ, पॉपकार्न खाओ, फिल्म देखो और भूल जाओ।
इंद्र कुमार कभी भी महान फिल्म बनाने का दावा नहीं करते। उन्हें अपनी सीमाओं का अच्छी तरह से ज्ञान है और वे उसी सीमा में रहकर बेहतर करने की कोशिश करते हैं। उनका मुख्य उद्देश्य है कि सिनेमाघर में रुपए खर्च कर आए हुए दर्शक का पूरा पैसा वसूल हों।
उनके द्वारा रचा गया हास्य बहुत महान नहीं होता। हास्य फिल्म बनाने के लिए वे अकसर छोटे-छोटे चुटकुलों को श्रृंखलाबद्ध रूप में पेश करते हैं। सुनो, हँसो और भूल जाओ।
‘धमाल’ की वही कहानी है जो दो माह पूर्व प्रदर्शित फिल्म ‘जर्नी बॉम्बे टू गोवा’ की थी। लगता है कि दोनों फिल्मों के लेखक ने एक ही जगह से प्रेरणा ली है। वहीं मसखरों की फौज, खजाने को पाने की होड़ और बॉम्बे से गोवा की जर्नी, लेकिन ‘धमाल’ उस फिल्म के मुकाबले बेहतर हैं।........ पुरी कहाँनी यहाँ से पढिए ।
(साभार्:वेबदुनियाँ)
स्टार भोईस ओफ ईन्डिया - सेप्टेम्बर ७, - डाउनलोड
स्टार भोईस ओफ ईन्डिया - सेप्टेम्बर ७, - डाउनलोड
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रामगोपाल वर्मा की आग’ - DOWNLOAD
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Tuesday, September 4, 2007
क्या ? शैफ-करिना ? ? - करीना-शाहिद में ब्रेकअप?
करीना कपूर और शाहिद कपूर के बीच पिछले दो-तीन वर्षों से बेहद प्यार है। साथ में जीने-मरने की दोनों ने कसमें खाई हैं। दोनों के परिवार वाले भी एक-दूसरे को बेहद पसंद करते हैं।
इन दिनों खबर आ रही है कि फिल्मी स्टाइल में सैफ ने दो प्यार करने वालों के बीच एंट्री ली और बेबो का दिल जीत लिया। ‘टशन’ फिल्म में सैफ और करीना काम कर रहे हैं और कहा जाता है कि दोनों एक-दूसरे के प्रति आकर्षित हो गए।
यूँ भी सैफ अली आशिक मिजाज व्यक्ति है। पत्नी अमृता सिंह को छोड़ने के बाद उनका दिल विलायती कन्या रोजा पर आ गया। रोजा ने जब सैफ का साथ छोड़ा तो उनका नाम बिपाशा से जुड़ा और अब करीना के साथ। बात में कितनी सचाई है इसके लिए थोड़ा इंतजार करना होगा।
(स्रोत - वेबदुनिया)
रामगोपाल वर्मा की आग : सिर्फ राख
समय ताम्रकर
निर्माता : रामगोपाल वर्मा
निर्देशक : रामगोपाल वर्मा
कलाकार : अमिताभ बच्चन, अजय देवगन, सुष्मिता सेन, निशा कोठारी, प्रशांत राज, मोहनलाल
रेटिंग : 1.5/5
‘रामू पागल हो गया’ ये नाम है उस फिल्म का जिसे हाल ही में एक व्यक्ति ने रजिस्टर्ड कराया है। हो सकता है उसे ‘रामगोपाल वर्मा की आग’ देखने का मौका पहले मिल गया हो और उसे रामू पर फिल्म बनाने का आइडिया आया हो, क्योंकि ‘रामगोपाल वर्मा की आग’ देखने के बाद यही खयाल आता है।
जिस तरह एक हिट गाने की मधुरता को बिगाड़कर रीमिक्स वर्जन बनाया जाता है, कुछ वैसा ही रामू ने ‘शोले’ के साथ किया है। ‘शोले’ को उन्होंने अपने अंदाज में बनाया है। सलीम-जावेद की पटकथा पर फिल्म कैसे बनाई जाती है, यह रमेश सिप्पी ने ‘शोले’ बनाकर बताया था। उसी तरह रामू ने यह बताया है कि फिल्म कैसे नहीं बनाई जानी चाहिए थी। प्रयोग के नाम पर रामू ने ‘शोले’ के साथ छेड़छाड़ की और उसका बिगड़ा हुआ हुलिया ‘रामगोपाल वर्मा की आग’ में दिखाई देता है।
आप ये उम्मीद लेकर फिल्म देखने मत जाइए कि रमेश सिप्पी की शोले जैसी फिल्म आपको देखने को मिलेगी, क्योंकि रामू ने हूबहू कॉपी नहीं की है। उन्होंने मूल कथा को वैसा ही रखा है और वातावरण को बदल दिया है।
गाँव की जगह शहर आ गया और डाकू की जगह भाई। ‘शोले’ के दृश्यों को थोड़े-बहुत फेरबदल कर पेश किया गया है। फिल्म में ‘तेरा क्या होगा कालिया’ या ‘अरे ओ सांबा’ जैसे संवाद नहीं सुनाई देंगे, बल्कि इनकी जगह दूसरे संवाद रखे गए है।
कहानी वही है, जो ‘शोले’ की थी। इंस्पेक्टर नरसिम्हा के परिवार के सदस्यों को बब्बन मार डालता है। बब्बन से बदला लेने के लिए नरसिम्हा हीरू और राज को चुनता है। ‘शोले’ में हर किरदार लार्जर देन लाइफ था, लेकिन रामू ने अपनी फिल्म के किरदारों को यथार्थ के नजदीक रखा है।
फिल्म में से रोमांस और मस्ती गायब है। अमिताभ और धर्मेन्द्र की जो केमेस्ट्री थी, वह प्रशांत और अजय देवगन के बीच कहीं नजर नहीं आती। अजय और निशा के रोमांटिक सीन बिलकुल भी अपील नहीं करते। अजय देवगन का सुसाइड वाला दृश्य तथा राज का हीरू के लिए घुँघरू की माँ से शादी की बात करने वाले दृश्य हास्यास्पद हैं।
फिल्म का पहला हाफ तो किसी तरह झेला जाता है, लेकिन मध्यांतर के बाद फिल्म झेलना मुश्किल हो जाती है। दूसरे हाफ में हिंसात्मक दृश्यों की भरमार है।
रामू ने सबसे ज्यादा मेहनत बब्बन (अमिताभ बच्चन) पर की है और अन्य किरदारों को महत्व नहीं दिया है। अमिताभ कुछ दृश्यों में जमे, लेकिन कहीं-कहीं ओवर-एक्टिंग का शिकार हो गए। अजय देवगन और प्रशांत राज अपना प्रभाव छोड़ने में नाकाम रहे, क्योंकि उनके किरदार भी कमजोर थे। सुष्मिता सेन और निशा कोठारी ने अच्छा अभिनय किया है। मोहनलाल का अभिनय तो अच्छा है, लेकिन उनका हिंदी बोलने का लहजा अखरता है। राजपाल यादव से तो खीझ पैदा होती है।
अमित राय ने फोटोग्राफी के नाम पर काफी प्रयोग किए हैं, लेकिन सारे प्रयोग अच्छे लगें, यह जरूरी नहीं है। उन्होंने फिल्म को कई आड़े-तिरछे कोणों से शूट किया है। कई बार परदे पर आधे-अधूरे चेहरे दिखाई देते हैं। अमिताभ का सेब उछालने वाला शॉट उन्होंने बेहतरीन फिल्माया है।
फिल्म में गाने आते-जाते रहते हैं और लोगों को ‘ब्रेक’ मिल जाता है। ‘शोले’ से केवल एक गाना ‘मेहबूबा’ उठाया गया है, जिस पर उर्मिला ने अपने जलवे दिखाए हैं। अभिषेक बच्चन ने भी इस गाने में अपना चेहरा दिखाया है।
‘शोले’ में आउटडोर शूटिंग थी, तेज धूप थी, उजाला था, वीरू-बसंती की मस्ती थी। रामू की फिल्म में अंधेरा है, मटमैलापन है, सीलन है, बदसूरत चेहरे हैं। यदि ‘शोले’ से फिल्म की तुलना नहीं भी की जाए और एक नई फिल्म के रूप में भी ‘आग’ को देखा जाए तो भी फिल्म कहीं से प्रभावित नहीं करती। हो सकता है कोई सिरफिरा 'शोले' से छेड़छाड़ के आरोप में रामू पर मुकदमा दायर कर दे।
(स्रोत - वेबदुनिया)
सर्किट और मुन्नाभाई का अलग अंदाज
सर्किट और मुन्नाभाई बहुत ही पक्के दोस्त हैं। संजय दत्त और अरशद वारसी द्वारा निभाए गए इन किरदारों को दर्शकों ने बेहद पसंद किया। दोनों की जोड़ी परदे पर खूब जमती है। सोचिए इनमें दुश्मनी हो जाए तो कैसा लगे?
‘धमाल’ में दोनों धमाल करते हुए नजर आएँगे, लेकिन कुछ अलग अंदाज में। संजय दत्त इसमें पुलिस ऑफिसर की भूमिका निभा रहे हैं और वे अरशद को पकड़ने के लिए उसका पीछा करेंगे। अरशद वारसी के मुताबिक उनकी जोड़ी दर्शकों का एक बार फिर मनोरंजन करने में कामयाब होगी।
(स्रोत - वेबदुनिया)
‘हे बेबी’ का सीक्वल?
- समय ताम्रकर
जैसे ही फिल्म हिट होती है उसका सीक्वल बनाने की होड़ मच जाती है। ‘हे बेबी’ हाल ही में प्रदर्शित हुई है। बॉक्स ऑफिस पर अभी तक उसका प्रदर्शन ठीकठाक रहा है। खबर है कि निर्माता साजिद नाडियाडवाला और निर्देशक साजिद खान इस फिल्म का रीमेक बनाने जा रहे हैं और उन्होंने पटकथा पर काम भी शुरू कर दिया है। इसमें पूरी स्टारकास्ट वहीं की वहीं रहेगी, केवल बेबी गर्ल अब सात वर्ष का दिखाई देगी। हालाँकि अभी तक कोई अधिकृत घोषणा नहीं की गई है।
(स्रोत - वेबदुनिया)
Saturday, September 1, 2007
धमाल : चार दोस्तों की कहानी
- समय ताम्रकर
निर्माता : अशोक ठाकरिया-इंद्रकुमार
निर्देशक : इंद्रकुमार
संगीतकार : अदनान सामी
कलाकार : संजय दत्त, अरशद वारसी, रितेश देशमुख, आशीष चौधरी, जावेद जाफरी
इंद्रकुमार द्वारा निर्देशित फिल्म 'धमाल' की खास बात यह है कि इसमें कोई नायिका नहीं है। इंद्रकुमार का कहना है कि फिल्म की कहानी में नायिका की कोई जरूरत महसूस नहीं हुई और दर्शक भी नायिका की कमी को महसूस नहीं करेंगे।
फिल्म की कहानी चार दोस्तों के आसपास घूमती है। चारों में गहरी दोस्ती है। मानव श्रीवास्तव (जावेद जाफरी) को दुनिया का सबसे बड़ा मूर्ख कहा जाए तो कोई बड़ी बात नहीं है। वह कितना बड़ा मूर्ख है ये खुद उसे भी पता नहीं है। उसके बड़े भाई आदित्य श्रीवास्तव उर्फ आदि (अरशद वारसी) को इन चारों के बीच सबसे बुद्धिमान माना जाता है। उसे सब कुछ पता है, लेकिन आधा-अधूरा। अधूरे ज्ञान वाला तो मूर्ख से भी ज्यादा खतरनाक होता है।
देशबंधु रॉय उर्फ रॉय (रितेश देशमुख) भ्रम में जीने वाला इंसान है। उसे भ्रम है कि दुनिया में उससे होशियार जासूस और कोई नहीं है। बोमन कांट्रेक्टर (आशीष चौधरी) को मिस्टर डरपोक कहा जाता है। हर समय डरने वाला बोमन अपने पिता नारी कांट्रेक्टर (असरानी) से सबसे ज्यादा डरता है।
चारों साथ रहते हैं और साथ काम करते हैं। पैसा कमाने की आसान राह वे हमेशा खोजते रहते हैं। एक दिन उन्हें बोस (प्रेम चोपड़ा) मिलता है। बोस की अंतिम साँसे चल रही है। मरने के पूर्व वह कुछ ऐसा राज बता जाता है कि चारों की बाँछे खिल जाती है। उन्हें लगता है कि अब अमीर बनने से उन्हें कोई नहीं रोक सकता।
दुर्भाग्य से इंसपेक्टर कबीर नायक (संजय दत्त) वहाँ आ धमकता है। वह बोस को पकड़ने की पिछले दस साल से कोशिश कर रहा है। इन चारों को बोस की लाश के पास खड़ा देख उसका दिमाग ठनकता है। वह इन चारों को ही अपराधी समझता है। किसी तरह ये चार नमूने कबीर को चकमा देकर भाग निकलते हैं।
कबीर इनका पीछा करता है। कबीर और ये चार दोस्त भागते-भागते कई हास्यास्पद परिस्थितियों से गुजरते हैं। कई उतार-चढ़ाव आते हैं जो दर्शकों को खूब हँसाते हैं।
(स्रोत - वेबदुनिया)
सलमान रिहा : मुंबई पहुँचे
बहुचर्चित चिंकारा शिकार प्रकरण में 25 अगस्त से यहाँ केन्द्रीय कारागार में बंद फिल्म अभिनेता सलमान खान को राजस्थान उच्च न्यायालय से जमानत मिलने के बाद शुक्रवार शाम जेल से रिहा कर दिया गया। करीब नौ बजे सलमान मुंबई पहुँच गए।
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एचआर पँवार ने आज तीन घंटे की सुनवाई के बाद सलमान की पुनरीक्षण याचिका को मंजूर कर उसे जमानत पर रिहा करने के आदेश दिए। यह आदेश मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट रवि शर्मा की अदालत में आने पर जमानत लेने संबंधी कार्यवाही पूरी की गई और इसके बाद शर्मा ने सलमान की रिहाई के आदेश जारी किए।
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा करीब शाम पाँच बजे दिए आदेश की प्रतिलिपि जेल प्रशासन के पास ले जाने पर कागजी कार्यवाही की गई और करीब 5 बजकर 56 मिनट पर उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया।
सलमान के जेल जाने के बाद 26 व 27 अगस्त को जोधपुर आए उसके माता-पिता, भाई-बहनें यहीं पर सलमान की रिहाई का इंतजार कर रहे थे। जेल से सलमान की रिहाई के समय उनके वकील दीपेश मेहता ही आए थे और परिजन होटल में ही उसके आने का इंतजार कर रहे थे।
प्रशंसकों का शुक्रिया अदा किया : जोधपुर से चार्टर विमान से उड़कर मुंबई पहुँचे सलमान करीब पौने दस बजे अपने घर पहुँचे। सलमान ने घर की बालकनी में आकर बाहर मौजूद हजारों प्रशंसकों का हाथ जोड़कर शुक्रिया अदा किया। बताया जाता है कि घर के बाहर प्रशंसकों की भीड़ को ध्यान में रखते हुए उन्होंने मुख्य द्वार से घर में प्रवेश नहीं किया। घर में प्रवेश के लिए उन्हें दीवार फाँदनी पड़ी। कैटरीना को भी घर में घुसने के लिए छलाँग लगानी पड़ी।
(स्रोत - वेबदुनिया)