Friday, September 28, 2007

रोमांसिंग विद देव आनन्द - ४

जाएँ तो जाएँ कहाँ!

Dev-Waheeda

        26 सितम्बर 1923 को पंजाब के गुरदासपुर कस्बे में जन्मे देव आनन्द के पिता पिशोरीमल नामी वकील थे। वे कांग्रेस के कार्यकर्ता थे और आजादी की लड़ाई में कई बार जेल भी गए थे। देव साहब अपने माता-पिता की पाँचवीं संतान थे। 1940 में माता के निधन के बाद नौ भाई-बहनों को अपनी देखभाल खुद करनी पड़ी। बचपन कठिनाइयों में गुजरा। रद्दी की दुकान से बाबूराव पटेल द्वारा सम्पादित फिल्म इंडिया के पुराने अंक पढ़कर देव साहब ने फिल्मों में दिलचस्पी लेना शुरू किया। कई बार दोस्तों की जुगाड़ से फिल्म भी देख लिया करते थे। फिल्म ‘बंधन’ के सिलसिले में अशोक कुमार गुरदासपुर आए, तो भीड़ में घिरे दादा मुनि को एकटक निहारते रहे। अशोककुमार के प्रति लोगों का भक्तिभाव देखकर देव आनंद ने मन में सोचा कि बी.ए. करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए विदेश नहीं जा सका तो वे अभिनेता बनना पसंद करेंगे। पिता के मुंबई जाकर काम न करने की सलाह के विपरीत देव अपने भाई चेतन के साथ फ्रंटियर मेल से 1943 में बंबई पहुँचे। उस समय उनकी जेब में तीस रुपए थे। ये तीस रुपए रंग लाए और जाएँ तो जाएँ कहाँ वाले देव आनन्द को फिल्मी दुनिया में आशियाना मिल गया।

 

(स्रोत्-वेबदुनिया)

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