Thursday, September 27, 2007

रोमांसिंग विद देव आनन्द -३

हर फिक्र को धुएँ में उड़ाते चले गए

Devanand

देव आनन्द के सदाबहार रहने और आज तक सक्रिय रहने के अनेक राज हैं। मसलन उन्होंने सिगरेट उतनी ही पी, जितनी अभिनय के लिए जरूरी थी। शराब को दवा की तरह पिया। सिर्फ एक जाम और वह भी पार्टियों में मेहमानों की शान रखने के लिए। देव साहब दादा मुनि यानी अशोक कुमार के शिष्य रहे हैं, इसलिए स्वास्थ्य के प्रति सदैव सजग रहे। उन्होंने फिल्मों से जो पैसा कमाया, उसे फिल्मों में ही लगाया। अपने बैनर नवकेतन के तले अपने बड़े भाई चेतन आनन्द के निर्देशन में उन्होंने यादगार फिल्मों का निर्माण किया। जब चेतन ने अपना प्रोडक्शन हाउस अलग कायम किया तो छोटे भाई विजय आनन्द को साथ लेकर ‘तेरे घर के सामने’ तथा ‘गाइड’ जैसी कालजयी फिल्में दर्शकों को उपहार में दी। आर.के. नारायण के उपन्यास पर बनी ‘गाइड’ ने अपने समय में देश में एक नई बहस को जन्म दिया था। आज फिर जीने की तमन्ना है, आज फिर मरने का इरादा है।

Dev-Hema

एंटी हीरो की लोकप्रिय इमेज
हिन्दी सिनेमा में पहली बार एंटी हीरो के रूप में आए अशोक कुमार, बॉम्बे टॉकीज की फिल्म ‘किस्मत’ (1943) में। यह फिल्म कलकत्ता के रॉक्सी सिनेमा में 3 साल 11 महीने और 24 दिन हाउसफुल में चली थी। इसमें कवि प्रदीप का गाना उन दिनों आजादी का तराना बन गया था- दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिन्दुस्तान हमारा है। देव आनन्द ने अपने अँगरेजियत भरे तौर-तरीकों से दर्शकों को लुभाया। उनकी अधिकांश फिल्मों की थीम अपराध आधारित होती थीं। 1958 में बनी ‘कालापानी’ में अभिनय का सर्वोत्तम फिल्म फेयर अवार्ड मिला। 1966 में ‘गाइड’ ने दूसरी बार यह इनाम उन्हें दिलाया। ज्वेलथीफ/ जानी मेरा नाम/ हरे रामा हरे कृष्णा फिल्मों का दौर देव साहब के जीवन का स्वर्णिम काल माना जाता है। विविध भारती के एक इंटरव्यू में देव आनन्द ने कहा था- कामयाबियों का जश्न और नाकामयाबी का मातम मनाए बिना मैं अपना काम लगातार किए जा रहा हूँ। इसके पीछे उनकी सक्रियता और आत्मविश्वास है।

(स्रोत्-वेबदुनिया)

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