Sunday, December 9, 2007

हैलो : वन नाइट एट कॉल सेंटर

निर्माता-निर्देशक : अतुल ‍अग्निहोत्री
संगीत : सलीम-सुलैमान, साजिद-वाजिद
कलाकार : सोहेल खान, ईशा कोप्पिकर, शरमन जोशी, गुल पनाग, अमृता अरोरा, सलमान खान (विशेष भूमिका), कैटरीना कैफ (विशेष भूमिका)

Isha
PR
चेतन भगत के उपन्यास 'वन नाइट @ द कॉल सेंटर' को आधार बनाकर अतुल अ ग्निहोत्री 'हैलो' नामक फिल्म बना रहे हैं। जैसा कि नाम से जाहिर है, 'हैलो' कॉल सेंटर पर एक रात में घटी घटनाओं पर आधारित फिल्म है।

चूँकि अतुल अग्निहोत्री ने सलमान की बहन से शादी की है, इसलिए इस फिल्म में खान परिवार के कलाकार मौजूद हैं। सलमान और कैटरीना विशेष भूमिकाओं में नजर आएँगे। अतुल इस फिल्म के पूर्व एक फ्लॉप फिल्म बना चुके हैं।

फिल्म में कॉल सेंटर में काम करने वालों की मानसिक हालात, रिश्ते, दु:ख, परिवार से दूर रहने का दर्द, प्यार, महत्वाकांक्षाएँ, काम का दबाव और खुशियों को दिखाया जाएगा।

हर चरित्र की अपनी मजबूरियाँ और इच्छाएँ हैं। काम में वे इतना व्यस्त रहते हैं कि उनके पास अपने लिए समय नहीं रहता। रात में यहाँ काम करने वाले कर्मचारी दिन में अलग काम करते हैं।
(स्रोत - वेबदुनिया)

Akshay Rocks In "WELCOME" Video

IndiaGlitz [Friday, December 07, 2007]

After the super success of 'Hare Rama Hare Krishna' in 'Bhool Bhulaiyaa', Akshay Kumar rocks again in the title track music video of 'Welcome'. Looks like its another blockbuster music video starring Akshay, a precursor to his consecutive hits from Namastey London, Heyy Baby,& Bhool Bhulaiyaa this year.

The mobster special video has been done with a very stylized look with mind blowing special effects. 'Welcome' will be Akshay's last comedy of the year. Welcome , being touted as the biggest release of Eid and Christmas, marks the return of the Akshay-Katrina pairing for a third time, besides assembling the biggest ensemble cast comprising Paresh Rawal , Anil Kapoor , Feroz Khan , Nana Patekar & Mallika Sherawat under one roof. 

Ask Akshay about his reign at the box-office this year and Welcome and he smiles, "I'm happy that the three comedies I did this year had the box-office laughing. Welcome is the king of them all! It's a laugh-riot from the word go and I hope everyone enjoys it during the festive season as it is my last major comedy of 2007!" 

हैलो : वन नाइट एट कॉल सेंटर

निर्माता-निर्देशक : अतुल ‍अग्निहोत्री
संगीत : सलीम-सुलैमान, साजिद-वाजिद
कलाकार : सोहेल खान, ईशा कोप्पिकर, शरमन जोशी, गुल पनाग, अमृता अरोरा, सलमान खान (विशेष भूमिका), कैटरीना कैफ (विशेष भूमिका)

Isha
PR
चेतन भगत के उपन्यास 'वन नाइट @ द कॉल सेंटर' को आधार बनाकर अतुल अ ग्निहोत्री 'हैलो' नामक फिल्म बना रहे हैं। जैसा कि नाम से जाहिर है, 'हैलो' कॉल सेंटर पर एक रात में घटी घटनाओं पर आधारित फिल्म है।

चूँकि अतुल अग्निहोत्री ने सलमान की बहन से शादी की है, इसलिए इस फिल्म में खान परिवार के कलाकार मौजूद हैं। सलमान और कैटरीना विशेष भूमिकाओं में नजर आएँगे। अतुल इस फिल्म के पूर्व एक फ्लॉप फिल्म बना चुके हैं।

फिल्म में कॉल सेंटर में काम करने वालों की मानसिक हालात, रिश्ते, दु:ख, परिवार से दूर रहने का दर्द, प्यार, महत्वाकांक्षाएँ, काम का दबाव और खुशियों को दिखाया जाएगा।

हर चरित्र की अपनी मजबूरियाँ और इच्छाएँ हैं। काम में वे इतना व्यस्त रहते हैं कि उनके पास अपने लिए समय नहीं रहता। रात में यहाँ काम करने वाले कर्मचारी दिन में अलग काम करते हैं।
(स्रोत - वेबदुनिया)

बदलाव के दौर से गुजरते संजय गुप्ता

समय ताम्रकर
Sanjay Gupta

संजय गुप्ता ने पहली फिल्म 'आतिश' बनाई थी और इसी फिल्म की शूटिंग के दौरान उनकी दोस्ती संजय दत्त से हुई। संजय गुप्ता को स्टाइलिश फिल्म बनाने का शौक था और वे हमेशा हॉलीवुड की फिल्मों से प्रभावित रहे हैं। अपने हॉलीवुड ज्ञान से उन्होंने संजू बाबा को भी प्रभावित कर लिया।

संजय दत्त से दोस्ती का फायदा संजय गुप्ता को हमेशा मिलता रहा और कई फ्लॉप फिल्म बनाने के बावजूद वे अब तक डटे हुए हैं। मार्केटिंग में माहिर संजय गुप्ता अपने बड़बोले बयानों के कारण हमेशा चर्चित रहे हैं।

कहते हैं एक बार विवेक ओबेरॉय ने संजय के साथ काम करने की ख्वाहिश प्रकट की। विवेक पर तब तक फ्लॉप सितारे का ठप्पा लग चुका था। संजय ने विवेक से कहा कि वे उसको अपनी फिल्म में लेने के लिए तैयार हैं, बशर्ते विवेक उन्हें पैसा दें।

'आतिश', 'जंग', 'काँटे', 'हमेशा' और 'जिंदा' जैसी फ्लॉप फिल्में संजय के खाते में जमा हैं। लेकिन चतुराई के बल पर उन्होंने अपना आभामंडल ऐसा बनाया है कि सितारें उनके साथ काम करने को लालायित रहते हैं क्योंकि वे कलाकारों को बेहद स्टाइलिश तरीके से प्रस्तुत करते हैं।

स्टाइल के प्रति संजय को विशेष मोह है और यह उनकी फिल्मों में झलकता है। आपराधिक पृष्ठभूमि पर आधारित ‍उनकी फिल्मों में अपराधियों को महामंडित कर पेश किया जाता है। 'आतिश' से लेकर 'जिंदा' तक संजय ने हमेशा कहानी के बजाय स्टाइल पर जोर दिया, इसलिए स्टाइलिश फिल्म पसंद करने वालों को संजय की फिल्में पसंद आईं। 'काँटे', 'मुसाफिर' और 'जिंदा' ने भले ही बॉक्स ऑफिस पर कोई खास कामयाबी हासिल नहीं की, लेकिन इस तरह की फिल्मों को पसंद करने वालों का एक छोटा वर्ग तैयार हुआ।

बड़े सपने देखने वाले संजय अब अपने प्रोडक्शन हाउस व्हाइट फीदर को ऊँचा उठाने का ख्वाब देख रहे हैं। यशराज फिल्म्स की तर्ज पर वे भी कई फिल्मों का निर्माण एक साथ कर रहे हैं। वे अब अपनी फिल्म मेकिंग में भी बदलाव लाकर स्टाइल की बजाय कथा को प्राथमिकता देना चाहते हैं और इसकी शुरूआत वे 'दस कहानियाँ' से कर रहे हैं।

संजय के दिमाग में अरसे से शॉर्ट फिल्म बनाने का खयाल था। उन्होंने दस छोटी-छोटी कहानियों को लेकर एक फिल्म बनाई है। अपने मिजाज के विपरीत संजय ने इस फिल्म में उन लोगों के साथ काम किया है जिनके सिनेमा और संजय के सिनेमा में जमीन आसमान का अंतर है। नसीरूद्दीन शाह, शबाना आजमी, नाना पाटेकर या मेघना गुलजार कभी संजय के साथ काम करेंगे ये कोई सोच भी नहीं सकता था।

संजय गुप्ता गुलजार के बहुत बड़े प्रशंसक हैं। जिस तरह की वे फिल्में बनाते हैं, उनमें गुलजार फिट नहीं बैठते। लेकिन 'दस कहानियाँ' में गुलजार ने हर कहानी के लिए एक कविता लिखी है, जिसे फिल्म की ऑडियो सीडी के साथ जारी किया गया है।

संजय की विचारधारा बदलने के पीछे एक दुर्घटना का भी हाथ है। कुछ बरस पहले उनका एक्सीडेंट हो गया था। संजय को महीनों अस्पताल में गुजारना पड़े और उन्हें सोचने का काफी वक्त मिला, शायद इसी कारण उनके विचारों में परिवर्तन हुआ।

फिल्मों की तरह संजय जिंदगी भी स्टाइलिश तरीके से जीते हैं। 'लार्जर देन लाइफ' के प्रति उन्हें विशेष मोह है। समीरा रेड्डी से लेकर दीया मिर्जा तक कई नायिकाओं से उनका नाम जुड़ा। 'दस कहानियाँ' प्रदर्शित होने के बाद वे मुंबई से केरल अपने ग्रुप के साथ बाइक पर जाएँगे और पीछे-पीछे उनका स्टॉफ कार में आएगा। शायद संजय अपनी अगली फिल्म इस यात्रा पर बनाएँ।

संजय गुप्ता द्वारा निर्देशित फिल्में :
आतिश (1994), राम शस्त्र (1995), हमेशा (1997), जंग (2000), खौफ (2000), काँटे (2002), मुसाफिर (2004), जिंदा (2006) दस कहानियाँ (2007)

(स्रोत - वेबदुनिया)

शादी के लिए वक्त नहीं : शिल्पा

पेरिस (भाषा), बुधवार, 31 अक्टूबर 2007   ( 15:08 IST )
ब्रिटेन के रियल्टी टीवी शो सेलीब्रिटी बिग ब्रदर से सुर्खियों में लौटीं बालीवुड अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी जैसी मसरूफ महिला के लिए यह चौंकाने वाली बात नहीं कि उन्हें हर काम नियोजित तरीके से अन्जाम देना पड़ता है। इसी पर गौर करते हुए वह रिश्ते जोड़ने और परिवार शुरू करने को लेकर भी जल्दबाजी में नहीं दिखती।

इस साल सेलीब्रिटी बिग ब्रदर में नस्ली विवाद को लेकर आकर्षण का केन्द्र बनी शिल्पा बीते 12 महीने से खासी व्यस्त हैं। इस दौरान उन्होंने एक परफ्यूम लाँच किया। एक योग वीडियो फिल्माया और अब वह बर्लिन में दिखाए जा रहे थियेटर प्रोडक्शन 'मिस बालीवुड' में नजर आ रही हैं।

इसके अलावा वह जल्द ही लंदन का रुख करने वाली हैं। शिल्पा ने टेलीफोन पर दिए साक्षात्कार में एएफपी को बताया फिलहाल मेरे पास करने को बहुत कुछ है। मेरे पास काफी काम है। परिवार शुरू करने से जुड़े सवाल पर शिल्पा ने कहा वक्त ही कहाँ है। मेरे पास बिलकुल वक्त नहीं है।

उनका कहना था ‍कि मैं इस म्युजिकल (शो) के साथ व्यस्त हूँ और इसके बाद फिल्म में मसरूफ हो जाउँगी। उन्होंने कहा जाहिर तौर पर मुझे बच्चे पसंद हैं। अपने बच्चे होने पर भी मुझे काफी खुशी होगी। संभवत: अगले साल। इस बारे में देखना होगा।
(स्रोत - वेबदुनिया)

स्ट्रेंजर्स : अजनबी या दोस्त?

निर्माता : उदय तिवारी-राज कुन्द्रा
निर्देशक : आनंद एल राय
कलाकार : केके मेनन, जिमी शेरगिल, नंदना सेन, सोनाली कुलकर्णी

        'स्ट्रेंजर्स' की कहानी दो अजनबियों के इर्द-गिर्द घूमती है। इन दोनों अजनबियों की मुलाकात होती है इंग्लैंड में एक ट्रेन के बिजनेस क्लास कंपार्टमेंट में। संयोग की बात है कि दोनों भारतीय हैं।

मि. राय मैनेजमेंट की दुनिया की बहुत बड़ी हस्ती हैं। वहीं राहुल एक गुमनाम-सा लेखक हैं, जो अपनी पहचान बनाने की कोशिश में लगा हुआ है। दोनों का व्यक्तित्व एक-दूसरे से मेल नहीं खाता। दोनों ऐसी जिंदगी जी रहे होते हैं जो उन्होंने नहीं चुनी थी।

Nandna-Jimmy
IFM
यात्रा को मनोरंजक बनाने के लिए दोनों बातचीत शुरू करते हैं। उनकी बातों में कुछ संकेत होते हैं। वे चाहते हैं कि कुछ ऐसा करें, जिससे उनकी जिंदगी बदल जाएँ। उनकी बातचीत का जो परिणाम निकलता है उससे चार जिंदगी उलझ जाती हैं। अजनबी दोस्त बन जाते हैं और दोस्त अजनबी।

Friday, December 7, 2007

ऐश्वर्या की खुशी का राज

बॉलीवुड अभिनेत्री ऐश्वर्या राय बच्चन की खुशी इन दिनों छिपाए नहीं छिपती है। एक ओर तो अमिताभ बच्चन की बहू और दूसरी ओर अभिषेक बच्चन जैसा पति। शायद यही वजह है कि आजकल ऐश शादीशुदा जीवन की तारीफ करते नहीं थकती हैं।

हाल ही में एक साक्षात्कार के दौरान ऐश ने बताया कि अपनी खुशी को बयाँ करने के लिए शब्दों की हमेशा ही कमी रहती है। वैवाहिक जीवन का मेरा यह अनुभव बेहद खूबसूरत है। हर किसी को जीवन में एक बार यह अनुभव लेना ही चाहिए।


उन्होंने कहा कि यह मेरे जीवन का अनुपम अध्याय है और मैं अभिषेक के साथ अपने जीवन के बेहद हसीन पल बिता रही हूँ। इससे अधिक मैं अपनी खुशियों के बारे में और क्या कह सकती हूँ।

फिल्म उद्योग के विशेषज्ञों का मानना है कि है कि ऐश और अभिषेक की जोड़ी बॉलीवुड में इस कदर लोकप्रिय है, जिस तरह हॉलीवुड में अभिनेता ब्रैड पिट और अभिनेत्री एंजिलिना जोली की जोड़ी।

सगाई कर रहे हैं बिपाशा और जॉन?

John-Bipasha
पाँच वर्ष से प्यार में डूबे जॉन अब्राहम और बिपाशा बसु ने एक-दूसरे को अच्छी तरह से परख लिया है। वे अपने इस रिश्ते को और मजबूती प्रदान करना चाहते हैं। सूत्रों की बात पर यदि भरोसा किया जाए तो जॉन और बिपाशा जल्दी ही सगाई करने जा रहे हैं। यह रस्म बिपाशा के घर पर होगी।

पिछले दिनों दोनों के रिश्ते में दरार की खबरें आई थीं। बिपाशा का नाम सैफ अली के साथ भी जोड़ा गया था। लगता है कि उन्होंने सब कुछ भूलाकर अब हमेशा के लिए एक-दूसरे का हो जाने का फैसला किया है।

शराब पीकर शूटिंग ?

Jimmy
IFM
संजय गुप्ता द्वारा निर्मित 'दस कहानियाँ' के साथ कई दिलचस्प बातें जुड़ी हुई हैं। बात शुरू करते हैं फिल्म के थीम सांग से। इस गाने में 20 कलाकार, 3000 लोगों की भीड़, 22 मेकअप आर्टिस्ट और 20 हेयर स्टाइलिस्ट ने अपना योगदान दिया। मात्र तीन दिन में यह गाना पूरा गया।

'राइज़ एंड फॉल' कहानी में संजय दत्त और सुनील शेट्टी नजर आएँगे। इन दोनों अभिनेताओं ने तीन दिन तक बारिश में भीगकर शूटिंग की। लगातार भीगने की वजह से संजय दत्त को जुखाम हो गया, वहीं सुनील शेट्टी को कुछ नहीं हुआ। सुनील इतने मजबूत नहीं है, बल्कि उन्होंने अपने सूट के अंदर रेन जैकेट पहनी हुई थी। संजू के मुकाबले सुनील चतुर निकले।

इसी फिल्म के जरिए दो महान कलाकारों को फिर साथ काम करने का मौका 18 वर्ष बाद मिला। शबाना आजमी और नसीरुद्दीन शाह ने कई श्रेष्ठ फिल्मों में साथ काम किया है, लेकिन पिछले 18 वर्ष से उन्हें साथ काम करने का अवसर नहीं मिला। 'राइस एंड प्लेट' नामक कहानी में दोनों साथ नजर आएँगे। अपनी भूमिका को प्रभावशाली बनाने के लिए शबाना ने तमिल शिक्षक की मदद ली।

अपने चरित्र को जीवंत बनाने के लिए कलाकार क्या-क्या नहीं करते। जिमी शेरगिल ने सचमुच में शराब पीकर शूटिंग की क्योंकि उन्हें लगा कि इससे उनका किरदार प्रभावशाली दिखेगा।

Dino
PR
डीनो मारिया भी पीछे नहीं थे। उन्हें फिल्म के एक दृश्य में शर्टलेस होना था। डीनो को लगा कि उनकी बॉडी शेप में नहीं है। उन्होंने तीन सप्ताह तक जिम जाकर मेहनत की और फिर शूटिंग की।

मि. व्हाइट मि. ब्लैक

निर्माता : बिपिन शाह निर्देशक : दीपक शिवदासानी संगीत : जतिन पंडित, ललित पंडित, तौसिफ अख्तर कलाकार : सुनील शेट्टी, अरशद वारसी, संध्या मृदुल, अनिष्का खोसला
IFM
हास्य के साथ अपराध के तत्व मिलाकर मि.व्हाइट मि.ब्लैक की कहानी लिखी गई है। गोपी (सुनील शेट्टी) गोवा आ पहुँचता है अपने दोस्त किशन (अरशद वारसी) की तलाश में। इस तलाशी की वजह है गोपी के पिता, जो मरते समय गोपी को कहते हैं कि जमीन का एक छोटा-सा टुकड़ा किशन को देना है। गोपी ठहरा आज्ञाकारी बेटा। किशन चलता-पुर्जा किस्म का आदमी है। लोगों को बेवकूफ बनाकर वह पैसे कमाता है। इसमें उसे सहयोग देता है बाबू (अतुल काले)। किशन यह बात अनुराधा (रश्मि निगम) से छुपाकर रखता है। वह जब इस बारे में पूछती है तो वह कह देता है ‍कि यह घटिया काम वह नहीं बल्कि उसका हमशक्ल भाई हरी करता है। किशन को गोपी ढूँढ निकालता है, लेकिन किशन जमीन के उस छोटे से टुकड़े के लिए होशियारपुर नहीं जाना चाहता। गोपी भी ठान लेता है कि वह किशन को लेकर ही जाएगा और अपने पिता की इच्छा पूरी करेगा। किशन, गोपी से बचकर भागता रहता है। किशन को पकड़ने में गोपी की मदद केजी रिसोर्ट के मालिक की बेटी तान्या (अनिष्का खोसला) करती है।
IFM
कहानी में मोड़ तब आता है जब पता चलता है कि तीन खूबसूरत लड़कियों ने मूल्यवान हीरे चुरा लिए हैं। उन तीनों लड़कियों के केजी रिसोर्ट में छिपे होने की खबर आती है। किशन को पैसा कमाने का मौका मिल जाता है। वह वहाँ पहुँचता है। उसके पीछे-पीछे गोपी और तान्या भी वहाँ पहुँचते हैं। सभी के वहाँ पहुँचने पर विचित्र परिस्थितियाँ पैदा होती हैं। गोपी अपने आपको उस गैंग का हिस्सा पाता है। कैसे हुआ ये सब? किसे मिलेंगे हीरे? क्या किशन को गोपी होशियारपुर ले जा पाएगा? उस जमीन में क्या राज छिपा हुआ है? सारे सवालों के जवाब मिलेंगे ‘मि.व्हाइट मि. ब्लैक’ में।

Thursday, December 6, 2007

नो स्मोकिंग : अधबुझी सिगरेट

*यू/ए * 14 री
निर्माता : विशाल भारद्वाज - कुमार मंगत
निर्देशक : अनुराग कश्यप
गीतकार : गुलजार
संगीतकार : विशाल भारद्वाज
कलाकार : जॉन अब्राहम, आयशा टाकिया, रणवीर शौरी, परेश रावल
रेटिंग : 2/5

IFM
'ब्लैक फ्रायडे' जैसी फिल्म बना चुके अनुराग कश्यप से उम्मीद थी कि 'नो स्मोकिंग' के रूप में बेहतर फिल्म देखने को मिलेगी, लेकिन सवा दो घंटे की इस फिल्म का केवल मध्यांतर के पहले वाला हिस्सा प्रभावशाली है।

धूम्रपान के खिलाफ बनाई गई यह फिल्म मध्यांतर तक बेहतर फिल्म की संभावनाएँ जगाती है। मध्यांतर के बाद लेखक और निर्देशक के रूप में अनुराग े फिल्म को इस तरह उलझा दिया है कि सब कुछ गड़बड़ हो गया है।

के (जॉन अब्राहम) की जिंदगी में सिगरेट का पहला स्थान है। उसके बाद उसकी पत्नी अंजली (आयशा टाकिया) और दोस्तों का नंबर आता है। के जिंदगी अपने हिसाब से जीना पसंद करता है और उसे किसी की दखलंदाजी पसंद नहीं है। अंजली के ‍कहने पर भी वह सिगरेट पीना नहीं छोड़ता। आखिरकार अंजली ही घर छोड़कर चली जाती है।

अंजली के जाने के बाद के सिगरेट छोड़ने की सोचता है और बाबा बंगाली (परेश रावल) के पास जाता है। बाबा के चंगुल में जो फँस जाता है उसे सिगरेट पीना छोड़नी ही पड़ती है। यदि बाबा की बात नहीं मानी गई तो आपके साथ कोई भी हादसा घटित हो सकता है।

अनुराग ने मध्यांतर के पहले वाला हिस्सा बेहद उम्दा बनाया है। इस हिस्से की कहानी में उन्होंने अपनी कल्पनाओं के खूब रंग भरे हैं। फिल्म का पहला दृश्य जो कि जॉन द्वारा देखा गया सपना है, बेहद उम्दा है।

इसके बाद जॉन जब बाबा बंगाली से मिलने पहली बार प्रयोगशाला जाता है, उस दृश्य में भी कल्पनाशीलता नजर आती है। बाबा बंगाली की प्रयोगशाला किसी अजूबे से कम नहीं है। जहाँ एक ओर कबाड़खाना है, वहीं दूसरी ओर बुर्का पहनकर फोन पर बात करने वाली लड़कियाँ हैं।

Ayesha
IFM
जिस तरह कुछ ज्योतिषियों के पास ताड़-पत्र में हर व्यक्ति का अतीत और भविष्य लिखा हुआ है, उसी तरह बाबा बंगाली के पास सिगरेट पीने वाले हर व्यक्ति की वीडियो कैसेट है, जिसमें उसने सिगरेट पीना कैसे शुरू की, कितनी बार ‍बीमार पड़ा, कितना खर्चा लगा जैसी तमाम घटनाओं के दृश्य कैद हैं।

अपना माल बेचने के लिए सदस्य बनाने वाली कंपनियों से भी अनुराग ने प्रेरणा ली है। बाबा बंगाली का कहा एक बार नहीं माना गया तो वे उंगलियाँ काट लेते हैं। यदि आप उनके पास एक ग्राहक भेजते हैं तो वे आपकी उंगलियाँ लौटा देते हैं।

एक दृश्य में उन्होंने जॉन और रणवीर शौरी को बच्चा बताया है, जब उन्होंने पहली बार सिगरेट पी थी। इस दृश्य को उन्होंने नाम दिया है 'क्योंकि बचपन भी कभी नॉटी था….'। शायद उनका इशारा एकता कपूर के धारावाहिकों की तरफ था।

अनुराग का कहना है कि जब एकता के धारावाहिक में बीस वर्ष के लोग दादा-दादी बन जाते हैं तो मेरी फिल्म में तीस वर्ष का कलाकार बारह वर्ष का बच्चा भी बन सकता है। फ्लैशबेक दृश्यों को उन्होंने पुरानी फिल्मों जैसा फिल्माया है। इन दृश्यों के माध्यम से अनुराग ने अच्छा हास्य रचा है।

मध्यांतर के बाद वाले हिस्से में उनकी कहानी कहने का अंदाज बेहद कठिन हो गया। यहाँ पर कहानी पर प्रयोग हावी हो गए। ऐसा लगा जैसे कि सरपट सड़क पर दौड़ने वाली गाड़ी ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर चलने लगी। इस वजह से फिल्म का समग्र प्रभाव बेहद कम हो गया।

जॉन अब्राहम ने अपना रोल पूरी गंभीरता से निभाया है। निर्देशक ने उनके व्यक्तित्व का भरपूर उपयोग किया है। आयशा टाकिया ‍ने सिर्फ काम निपटाया। परेश रावल अपने अभिनय में कुछ नयापन नहीं ला पाए।

John
IFM
गानों के लिए सिचुएशन कम थी। 'जब भी सिगरेट पीता हूँ' अच्छा है। बिपाशा पर फिल्माया गया और बहुप्रचारित किया गया गाना फिल्म के अंत में आता है। इस गाने को बीच में रखा जाना था। राजीव राय की फोटोग्राफी प्रभावशाली है।

बॉक्स ऑफिस पर फिल्म का कामयाब होना मुश्किल है, लेकिन इस फिल्म को देख कुछ लोग धूम्रपान करना बंद कर देते हैं तो इसे फिल्म की कामयाबी माना जाएगा।

तारे जमीन पर : हर बच्चा महत्वपूर्ण ***


निर्माता-निर्देशक : आमिर खान
गीत : प्रसून जोशी
संगीत : शंकर-अहसान-लॉय
कलाकार : आमिर खान, दर्शील सफारी, तान्या छेडा, सचेत इंजीनियर, टिस्का चोपड़ा, विपिन शर्मा

नन्हे-मुन्ने बच्चे हमारे देश की जनसंख्या का बहुत बड़ा हिस्सा हैं, लेकिन इनके लायक फिल्में बहुत कम बनती हैं। आमिर खान के साहस की प्रशंसा की जानी चाहिए कि उन्होंने अपने निर्देशन में बनी पहली फिल्म 'तारे जमीन पर' एक बच्चे को केन्द्र में रखकर बनाई है। वे चाहते तो एक कमर्शियल फिल्म भी बना सकते थे। इस फिल्म के जरिए उन्होंने बच्चों के भीतर झाँकने की कोशिश की है।

कहानी का मुख्य पात्र है ईशान अवस्थी (दर्शील सफारी)। उसकी उम्र है आठ वर्ष। बेचारा ईशान, है तो नन्हीं जान, लेकिन उसके कंधों पर पापा-मम्मी के ढेर सारे हैं अरमान। वे चाहते हैं कि ईशान अपने होमवर्क में रूचि लें। परीक्षा में अच्छे नंबर लाएँ। हमेशा साफ-सफाई का ध्यान रखें। ईशान कोशिश करता है, लेकिन फिर भी वह उन अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पाता।

ईशान की जिंदगी में पतंग, रंग और मछलियों का महत्व है। वह इनके बीच बेहद खुश रहता है। उसे पता नहीं है कि वयस्कों की जिंदगी में इन्हें महत्वहीन माना जाता है। लाख समझाने के बावजूद भी जब ईशान अपने माता-पिता की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पाता तो वे उसे बोर्डिंग स्कूल भेजने का निर्णय लेते हैं। उनका मानना है कि दूर रहकर ईशान अनुशासित हो जाएगा। कुछ सीख पाएगा।

ईशान नए स्कूल में जाता है, लेकिन उसमें कोई बदलाव नहीं आता। उसे अपने घर की याद सताती है। एक दिन स्कूल में नए आर्ट टीचर आते हैं। नाम है उनका रामशंकर निकुंभ (आमिर खान)। वे आम टीचर से बिलकुल अलग हैं। उनके पढ़ाने के नियम अलग हैं। वे बच्चों से उनकी कल्पनाएँ, उनके सपने और उनके विचार पूछते हैं और उसके अनुसार पढ़ाते हैं।

Darsheel
PR
बच्चों को ऐसा टीचर मिल जाएँ तो फिर क्या बात है। सारे विद्यार्थी निकुंभ सर की क्लास में चहचहाते हैं। उनके चेहरे की खुशी देखने लायक होती है, लेकिन ईशान अभी भी खुश नहीं है। उसके मन की उदासी को निकुंभ पढ़ लेते हैं। वे इसकी वजह जानना चाहते हैं। वे ईशान से बात करते हैं। धैर्य के साथ उसके विचार सुनते हैं। समय गुजरने के साथ-साथ ईशान अपने आपको निकुंभ की मदद से खोज लेता है।

पात्र-परिचय
Darsheel
PR
ईशान नंदकिशोर अवस्थी : मेरा नाम ईशान है और मैं आठ वर्ष का हूँ। मुझे कुत्ते, मछलियाँ, चमकती चीजें, रंग और पतंग बहुत पसंद हैं। मैं बहुत बिंदास हूँ। चित्र बनाना मुझे बहुत अच्छा लगता है। मैं बोर्डिंग स्कूल नहीं जाना चाहता हूँ। मैं वादा करता हूँ कि मैं मन लगाकर पढ़ाई करूँगा।

Papa
PR
नंदकिशोर अवस्थी : ये मेरे पापा हैं। वे रोज ऑफिस जाते हैं और खूब मेहनत करते हैं। कभी-कभी मेरे लिए उपहार भी लाते हैं। जब मेरे स्कूल टीचर मेरी शिकायत करते हैं तो वे बेहद गुस्सा हो जाते हैं। पापा का कहना है कि बोर्डिंग स्कूल जाकर ही मैं अनुशासन सीख पाऊँगा।

Maa
PR
माया अवस्थी : मेरी मम्मी। मुझे बहुत प्यार करती है। मैं भी उन्हें खूब चाहता हूँ। वह मेरे लिए खाना बनाती हैं। जब मुझे चोट लगती है तो मेरी देखभाल करती हैं। मेरी बोर्डिंग स्कूल जाने वाली बात उन्हें बुरी लग रही है, परंतु उनका मानना है कि यहीं मेरे लिए सही है।

योहान अवस्थी : ये हैं मेरे भाई, जिन्हें मैं दादा कहता हूँ। दादा बहुत अच्छे विद्यार्थी हैं। उन्होंने ढेर सारे पुरस्कार जीते हैं। मुझे उन पर गर्व है। वे भी मेरी देखभाल करते हैं और मुझे प्यार करते हैं। आय लव यू दादा।

मेरे टीचर : वे हमेशा मेरे साथ दुर्व्यवहार करते हैं। मेरी कॉपी में लाल निशान लगाना उन्हें बेहद पसंद है।

Aamir
PR
रामशंकर निकुंभ : निकुंभ सर बहुत अच्छे हैं। वे दूसरे टीचर की तरह कभी नहीं डाँटते। उनके चेहरे पर सदा मुस्कान रहती है। उन्हें भी मेरी तरह रंग, मछलियाँ और चित्र बनाना पसंद है। निकुंभ सर ने मुझे कई नई बातें बताईं जो कि बेहद मजेदार हैं। मैं बड़ा होकर निकुंभ सर जैसा बनना चाहूँगा।

राजन दामोदरन : राजन मेरा सबसे पक्का दोस्त हैं। वह बहुत बुद्धिमान है और टीचर्स के सारे सवालों का जवाब उसके पास है। वह हमेशा मेरी मदद करता है।