Sunday, December 9, 2007

बदलाव के दौर से गुजरते संजय गुप्ता

समय ताम्रकर
Sanjay Gupta

संजय गुप्ता ने पहली फिल्म 'आतिश' बनाई थी और इसी फिल्म की शूटिंग के दौरान उनकी दोस्ती संजय दत्त से हुई। संजय गुप्ता को स्टाइलिश फिल्म बनाने का शौक था और वे हमेशा हॉलीवुड की फिल्मों से प्रभावित रहे हैं। अपने हॉलीवुड ज्ञान से उन्होंने संजू बाबा को भी प्रभावित कर लिया।

संजय दत्त से दोस्ती का फायदा संजय गुप्ता को हमेशा मिलता रहा और कई फ्लॉप फिल्म बनाने के बावजूद वे अब तक डटे हुए हैं। मार्केटिंग में माहिर संजय गुप्ता अपने बड़बोले बयानों के कारण हमेशा चर्चित रहे हैं।

कहते हैं एक बार विवेक ओबेरॉय ने संजय के साथ काम करने की ख्वाहिश प्रकट की। विवेक पर तब तक फ्लॉप सितारे का ठप्पा लग चुका था। संजय ने विवेक से कहा कि वे उसको अपनी फिल्म में लेने के लिए तैयार हैं, बशर्ते विवेक उन्हें पैसा दें।

'आतिश', 'जंग', 'काँटे', 'हमेशा' और 'जिंदा' जैसी फ्लॉप फिल्में संजय के खाते में जमा हैं। लेकिन चतुराई के बल पर उन्होंने अपना आभामंडल ऐसा बनाया है कि सितारें उनके साथ काम करने को लालायित रहते हैं क्योंकि वे कलाकारों को बेहद स्टाइलिश तरीके से प्रस्तुत करते हैं।

स्टाइल के प्रति संजय को विशेष मोह है और यह उनकी फिल्मों में झलकता है। आपराधिक पृष्ठभूमि पर आधारित ‍उनकी फिल्मों में अपराधियों को महामंडित कर पेश किया जाता है। 'आतिश' से लेकर 'जिंदा' तक संजय ने हमेशा कहानी के बजाय स्टाइल पर जोर दिया, इसलिए स्टाइलिश फिल्म पसंद करने वालों को संजय की फिल्में पसंद आईं। 'काँटे', 'मुसाफिर' और 'जिंदा' ने भले ही बॉक्स ऑफिस पर कोई खास कामयाबी हासिल नहीं की, लेकिन इस तरह की फिल्मों को पसंद करने वालों का एक छोटा वर्ग तैयार हुआ।

बड़े सपने देखने वाले संजय अब अपने प्रोडक्शन हाउस व्हाइट फीदर को ऊँचा उठाने का ख्वाब देख रहे हैं। यशराज फिल्म्स की तर्ज पर वे भी कई फिल्मों का निर्माण एक साथ कर रहे हैं। वे अब अपनी फिल्म मेकिंग में भी बदलाव लाकर स्टाइल की बजाय कथा को प्राथमिकता देना चाहते हैं और इसकी शुरूआत वे 'दस कहानियाँ' से कर रहे हैं।

संजय के दिमाग में अरसे से शॉर्ट फिल्म बनाने का खयाल था। उन्होंने दस छोटी-छोटी कहानियों को लेकर एक फिल्म बनाई है। अपने मिजाज के विपरीत संजय ने इस फिल्म में उन लोगों के साथ काम किया है जिनके सिनेमा और संजय के सिनेमा में जमीन आसमान का अंतर है। नसीरूद्दीन शाह, शबाना आजमी, नाना पाटेकर या मेघना गुलजार कभी संजय के साथ काम करेंगे ये कोई सोच भी नहीं सकता था।

संजय गुप्ता गुलजार के बहुत बड़े प्रशंसक हैं। जिस तरह की वे फिल्में बनाते हैं, उनमें गुलजार फिट नहीं बैठते। लेकिन 'दस कहानियाँ' में गुलजार ने हर कहानी के लिए एक कविता लिखी है, जिसे फिल्म की ऑडियो सीडी के साथ जारी किया गया है।

संजय की विचारधारा बदलने के पीछे एक दुर्घटना का भी हाथ है। कुछ बरस पहले उनका एक्सीडेंट हो गया था। संजय को महीनों अस्पताल में गुजारना पड़े और उन्हें सोचने का काफी वक्त मिला, शायद इसी कारण उनके विचारों में परिवर्तन हुआ।

फिल्मों की तरह संजय जिंदगी भी स्टाइलिश तरीके से जीते हैं। 'लार्जर देन लाइफ' के प्रति उन्हें विशेष मोह है। समीरा रेड्डी से लेकर दीया मिर्जा तक कई नायिकाओं से उनका नाम जुड़ा। 'दस कहानियाँ' प्रदर्शित होने के बाद वे मुंबई से केरल अपने ग्रुप के साथ बाइक पर जाएँगे और पीछे-पीछे उनका स्टॉफ कार में आएगा। शायद संजय अपनी अगली फिल्म इस यात्रा पर बनाएँ।

संजय गुप्ता द्वारा निर्देशित फिल्में :
आतिश (1994), राम शस्त्र (1995), हमेशा (1997), जंग (2000), खौफ (2000), काँटे (2002), मुसाफिर (2004), जिंदा (2006) दस कहानियाँ (2007)

(स्रोत - वेबदुनिया)

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