Tuesday, September 4, 2007

रामगोपाल वर्मा की आग : सिर्फ राख

समय ताम्रकर

निर्माता : रामगोपाल वर्मा
निर्देशक : रामगोपाल वर्मा
कलाकार : अमिताभ बच्चन, अजय देवगन, सुष्मिता सेन, निशा कोठारी, प्रशांत राज, मोहनलाल
रेटिंग : 1.5/5

Ramu Ki Aag

‘रामू पागल हो गया’ ये नाम है उस फिल्म का जिसे हाल ही में एक व्यक्ति ने रजिस्टर्ड कराया है। हो सकता है उसे ‘रामगोपाल वर्मा की आग’ देखने का मौका पहले मिल गया हो और उसे रामू पर फिल्म बनाने का आइडिया आया हो, क्योंकि ‘रामगोपाल वर्मा की आग’ देखने के बाद यही खयाल आता है।
जिस तरह एक हिट गाने की मधुरता को बिगाड़कर रीमिक्स वर्जन बनाया जाता है, कुछ वैसा ही रामू ने ‘शोले’ के साथ किया है। ‘शोले’ को उन्होंने अपने अंदाज में बनाया है। सलीम-जावेद की पटकथा पर फिल्म कैसे बनाई जाती है, यह रमेश‍ सिप्पी ने ‘शोले’ बनाकर बताया था। उसी तरह रामू ने यह बताया है कि फिल्म कैसे नहीं बनाई जानी चाहिए थी। प्रयोग के नाम पर रामू ने ‘शोले’ के साथ छेड़छाड़ की और उसका बिगड़ा हुआ हुलिया ‘रामगोपाल वर्मा की आग’ में दिखाई देता है।
आप ये उम्मीद लेकर फिल्म देखने मत जाइए कि रमेश सिप्पी की शोले जैसी फिल्म आपको देखने को मिलेगी, क्योंकि रामू ने हूबहू कॉपी नहीं की है। उन्होंने मूल कथा को वैसा ही रखा है और वातावरण को बदल दिया है।
गाँव की जगह शहर आ गया और डाकू की जगह भाई। ‘शोले’ के दृश्यों को थोड़े-बहुत फेरबदल कर पेश किया गया है। फिल्म में ‘तेरा क्या होगा कालिया’ या ‘अरे ओ सांबा’ जैसे संवाद नहीं सुनाई देंगे, बल्कि इनकी जगह दूसरे संवाद रखे गए है।

Sush-Nisha

कहानी वही है, जो ‘शोले’ की थी। इंस्पेक्टर नरसिम्हा के परिवार के सदस्यों को बब्बन मार डालता है। बब्बन से बदला लेने के लिए नरसिम्हा हीरू और राज को चुनता है। ‘शोले’ में हर किरदार लार्जर देन लाइफ था, लेकिन रामू ने अपनी फिल्म के किरदारों को यथार्थ के नजदीक रखा है।
फिल्म में से रोमांस और मस्ती गायब है। अमिताभ और धर्मेन्द्र की जो केमे‍स्ट्री थी, वह प्रशांत और अजय देवगन के बीच कहीं नजर नहीं आती। अजय और निशा के रोमांटिक सीन बिलकुल भी अपील नहीं करते। अजय देवगन का सुसाइड वाला दृश्य तथा राज का हीरू के लिए घुँघरू की माँ से शादी की बात करने वाले दृश्य हास्यास्पद हैं।
फिल्म का पहला हाफ तो किसी तरह झेला जाता है, लेकिन मध्यांतर के बाद फिल्म झेलना मुश्किल हो जाती है। दूसरे हाफ में हिंसात्मक दृश्यों की भरमार है।
रामू ने सबसे ज्यादा मेहनत बब्बन (अमिताभ बच्चन) पर की है और अन्य किरदारों को महत्व नहीं दिया है। अमिताभ कुछ दृश्यों में जमे, लेकिन कहीं-कहीं ओवर-एक्टिंग का शिकार हो गए। अजय देवगन और प्रशांत राज अपना प्रभाव छोड़ने में नाकाम रहे, क्योंकि उनके किरदार भी कमजोर थे। सुष्मिता सेन और निशा कोठारी ने अच्छा अभिनय किया है। मोहनलाल का अभिनय तो अच्छा है, लेकिन उनका हिंदी बोलने का लहजा अखरता है। राजपाल यादव से तो खीझ पैदा होती है।

Amitabh

अमित राय ने फोटोग्राफी के नाम पर काफी प्रयोग किए हैं, लेकिन सारे प्रयोग अच्छे लगें, यह जरूरी नहीं है। उन्होंने फिल्म को कई आड़े-तिरछे कोणों से शूट किया है। कई बार परदे पर आधे-अधूरे चेहरे दिखाई देते हैं। अमिताभ का सेब उछालने वाला शॉट उन्होंने बेहतरीन फिल्माया है।
फिल्म में गाने आते-जाते रहते हैं और लोगों को ‘ब्रेक’ मिल जाता है। ‘शोले’ से केवल एक गाना ‘मेहबूबा’ उठाया गया है, जिस पर उर्मिला ने अपने जलवे दिखाए हैं। अभिषेक बच्चन ने भी इस गाने में अपना चेहरा दिखाया है।
‘शोले’ में आउटडोर शूटिंग थी, तेज धूप थी, उजाला था, वीरू-बसंती की मस्ती थी। रामू की फिल्म में अंधेरा है, मटमैलापन है, सीलन है, बदसूरत चेहरे हैं। यदि ‘शोले’ से फिल्म की तुलना नहीं भी की जाए और एक नई फिल्म के रूप में भी ‘आग’ को देखा जाए तो भी फिल्म कहीं से प्रभावित नहीं करती। हो सकता है कोई सिरफिरा 'शोले' से छेड़छाड़ के आरोप में रामू पर मुकदमा दायर कर दे।

(स्रोत - वेबदुनिया)

पहचान-पर्ची: फिल्म समिक्षा, aag, bollywood news

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