Thursday, July 19, 2007

जर्नी बॉम्बे टू गोवा : कष्टदायी यात्रा

- समय ताम्रकर

निर्माता : हुमायूँ रंगीला
निर्देशक : राज पेंडुरकर
संगीतकार : नितिन शंकर - रवि मीत
कलाकार : सुनील पाल, राजू श्रीवास्तव, विजय राज, अहसान कुरैशी, दीपक शिर्के
ढेर सारे हास्य कलाकारों को लेकर निर्देशक राज पेंडुरकर ने ‘जर्नी बॉम्बे टू गोवा’ नामक फिल्म बनाई हैं। छोटे-छोटे चुटकलों का कुछ मिनटों तक मजा ले सकते हैं, लेकिन ढाई घंटे तक उन्हें नहीं झेला जा सकता। फिल्म की कहानी और पटकथा बेहद लचर हैं। सिर्फ छोटे-छोटे संवाद ही हैं जिन्हें सुनकर कुछ पल के लिए ही हँसी आती है। फिल्म में ढेर सारे बेमतलब के दृश्य भी हैं जो फिल्म की लंबाई को बढ़ाते हैं।
कहानी :
सुनील पाल और विजय राज मिलकर सपने देखते रहते हैं। एक दिन अचानक उनके पास दो लाख रूपए आ जाते हैं और वे उन रूपयों के बल पर एक बस बनवाते हैं। इस खटारा बस में वे यात्रियों को बॉम्बे टू गोवा ले जाते हैं। सफर के दौरान एक यात्री की मृत्यु हो जाती हैं। मरने के पहले वह एक खजाने के बारे में बताता है और उस तक पहुँचने का एक नक्शा देता है। सभी के अंदर लालच जाग उठता है। वे सब अलग-अलग उस जगह पहुँचते हैं और फिर शुरू होती है खजाने को पाने की होड़।
निर्देशन :
सभी कलाकारों को वैसा ही अभिनय करना था जैसा कि वे टीवी पर करते हैं, इसलिए राज का काम आसान हो गया। संवाद भी ज्यादातर इन्हीं कलाकारों ने तैयार किए होंगे। पटकथा में कई खामियाँ हैं जिन पर निर्देशक ने गौर ही नहीं किया। फिल्म का तकनीकी रूप से कमजोर होना भी निर्देशक की कमजोरियों को उजागर करता है।
अभिनय :
राजू श्रीवास्तव, सुनील पाल, अहसान कुरैशी ने टीवी वाली अदाएँ यहाँ पर भी दोहराई हैं। आसिफ शेख, सुधीर पाँडे, विजय राज, दीपक शिर्के और अन्य कलाकारों ने भी अपने-अपने चरित्रों के साथ न्याय किया है।
अन्य पक्ष :
फिल्म की फोटोग्राफी बेहद खराब है। लाँग शॉट में कई बार कैमरा आउट ऑफ फोकस हो गया है। संपादन भी अच्छा नहीं है। संगीत के नाम पर एक गाना है। अन्य तकनीकी पक्ष भी कमजोर हैं।
कुल मिलाकर ‘जर्नी बॉम्बे टू गोवा’ देखना एक खटारा बस में सफर करने के समान कष्टदायी है।

(स्रोत - वेबदुनिया)

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