Saturday, September 8, 2007

दिमाग मत लगाओ, पॉपकार्न खाओ, फिल्म देखो और भूल जाओ।

Dhamaal

         इंद्र कुमार कभी भी महान फिल्म बनाने का दावा नहीं करते। उन्हें अपनी सीमाओं का अच्छी तरह से ज्ञान है और वे उसी सीमा में रहकर बेहतर करने की कोशिश करते हैं। उनका मुख्य उद्देश्य है कि सिनेमाघर में रुपए खर्च कर आए हुए दर्शक का पूरा पैसा वसूल हों।
उनके द्वारा रचा गया हास्य बहुत महान नहीं होता। हास्य फिल्म बनाने के लिए वे अकसर छोटे-छोटे चुटकुलों को श्रृंखलाबद्ध रूप में पेश करते हैं। सुनो, हँसो और भूल जाओ।  

                    ‘धमाल’ की वही कहानी है जो दो माह पूर्व प्रदर्शित फिल्म ‘जर्नी बॉम्बे टू गोवा’ की थी। लगता है कि दोनों फिल्मों के लेखक ने एक ही जगह से प्रेरणा ली है। वहीं मसखरों की फौज, खजाने को पाने की होड़ और बॉम्बे से गोवा की जर्नी, लेकिन ‘धमाल’ उस फिल्म के मुकाबले बेहतर हैं।........ पुरी कहाँनी यहाँ से पढिए ।

 

(साभार्:वेबदुनियाँ)

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