निर्देशक : अनिल शर्मा
संगीत : हिमेश रेशमिया
कलाकार : धर्मेन्द्र, सनी देओल, बॉबी देओल, शिल्पा शेट्टी, कैटरीना कैफ
धर्मेन्द्र, सनी और बॉबी की एक ही फिल्म में काम करने की इच्छा आखिरकार ‘अपने’ के जरिए पूरी हुई। ‘अपने’ पूरी तरह से धर्मेन्द्र की फिल्म है। फिल्म की कहानी उनके इर्दगिर्द घूमती है और वे फिल्म के सेंट्रल कैरेक्टर है। निर्देशक अनिल शर्मा ने देओल परिवार की एक्शन इमेज के विपरीत पिता-पुत्र के रिश्ते पर भावनाप्रधान फिल्म बनाई है।
कहानी : बलदेव सिंह चौधरी (धर्मेन्द्र) एक मशहूर मुक्केबाज था। अमरीका में एक साजिश के तहत उसे ड्रग लिए जाने का दोषी माना जाता है और उस पर पंद्रह वर्ष का बैन लगा दिया जाता है। अपने इस कलंक को मिटाने के लिए बलदेव अपने बड़े बेटे अंगद (सनी देओल) को मुक्केबाज बनाने का फैसला करता है ताकि वह विश्व चैम्पियन बन सके। अंगद मुक्केबाजी में राष्ट्रीय खिताब जीतता है। जब वह यह महसूस करता है कि भारत में मुक्केबाजी के खेल में पैसा नहीं है तो वह इस खेल को छोड़ने का निर्णय लेता है।
अंगद यह कदम अपने परिवार की खराब आर्थिक स्थिति को देखकर उठाता है। अंगद के इस निर्णय से बलदेव बेहद दु:खी होता है और पिता-पुत्र में संबंध खराब हो जाते हैं।
बलदेव के छोटे बेटे करण (बॉबी देओल) का हाथ बचपन में घटित एक दुर्घटना के कारण खराब हो जाता है। एक दिन चमत्कारिक ढंग से उसका हाथ ठीक हो जाता है। वह अपने पिता के सपने को पूरा करने के लिए बॉक्सिंग रिंग में उतरता है। वह कई बाजियाँ जीतते हुए मुक्केबाजी की विश्व चैम्पियनशिप के फायनल में जा पहुँचता है।
फायनल में उसका मुकाबला विश्व ख्याति प्राप्त मुक्केबाज लूका से होता है। लूका धोखे से करण को हरा देता है। करण यह बात अपने भाई और पिता को बताता है। अंगद को यह सुनकर बहुत गुस्सा आता है। वह लूका को बॉक्सिंग रिंग में उतरकर मुकाबला करने की चुनौती देता है। एक माह बाद लूका और अंगद के बीच मुकाबला होता है। लूका को हराकर अंगद अपने पिता के सपने को पूरा करता है।
निर्देशन : अनिल शर्मा ने एक बार फिर यह साबित किया है कि भावनात्मक दृश्यों पर उनकी गहरी पकड़ है। एक कलंकित मुक्केबाज के नजरिए से उन्होंने फिल्म की कहानी बेहतर तरीके से दिखाई है। धर्मेन्द्र की झटपटाहट और जीवन जीते हुए पल-पल मरने की बैचेनी को दर्शक महसूस करता है। मुक्केबाजी के दृश्य बेहद जीवंत है।
फिल्म की लंबाई बहुत ज्यादा है। इस फिल्म का संपादन कर इसे आधा घंटा छोटा किया जाना चाहिए। सनी देओल को निर्देशक ने बहुत कम महत्व दिया है, इससे सनी के प्रशंसक निराश होंगे। फिल्म शुरूआती घंटे में बेहद धीमी है।
अभिनय : अरसे बाद धर्मेन्द्र को एक अच्छा अवसर मिला। पूरी फिल्म का भार उन्होंने अपने कंधों पर उठाया हैं। एक कलंकित मुक्केबाज के चरित्र को उन्होंने बखूबी परदे पर पेश किया। बॉबी का अभिनय भी सुधरता जा रहा है। सनी को फिल्म के क्लायमैक्स में कुछ करने का मौका मिला। शिल्पा शेट्टी और कैटरीना के लिए फिल्म में बहुत कम जगह थी।
अन्य पक्ष : हिमेश रेशमिया के संगीत में कोई खास बात नहीं है। ‘तेरे आने से पहले’ और ‘अपने तो अपने होते हैं’ ही याद रह पाते हैं। फिल्म की फोटोग्राफी बढि़या है। पंजाब को देखकर बड़ा अच्छा लगता है और वहाँ के माहौल को दर्शक महसूस करता है। मुक्केबाजी के दृश्यों का फिल्मांकन भी उत्तम है। बैकग्राउण्ड म्यूजिक फिल्म को और प्रभावशाली बनाता है।
कुल मिलाकर ‘अपने’ एक भावनाओं से भरी साफ सुथरी पारिवारिक फिल्म हैं। लेकिन फिल्म की लंबाई, धीमी गति और फिल्म में उदासी भरे वातावरण के कारण युवाओं को यह शायद ही पसंद आएँ।
(स्रोत - वेबदुनिया)
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